काल के गाल से निकला 2020, वैक्सीन के इंतजार में 2021 का स्वागत
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
2020 की खट्टी मिठी यादों के साथ नए साल 2021 का स्वागत कुछ अलग अंदाज में हुआ। पूरी दुनिया जहां काल के गाल कोरोना के भय से कांप रही थी। जिसके कारण भारत में कोरोना संक्रमण को देखते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में रात्रि कर्फ्यू तथा नववर्ष के आयोजनों पर बंदिशों के कारण जश्न पूर्ण परवान नहीं चढ़ सका। लेकिन कुछ लोग नए वर्ष का स्वागत इस लिहाज से कर रहे हैं 2020 में काल बने कोरोना से बचाने के 2021 में आने वाली वैक्सीन के इंतजार में नए वर्ष व वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं। देश में लोगों से कोरोना गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित कराने के लिए कड़ी निगरानी रखी गई। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तथा ड्रोन की तैनाती रही। लेकिन सिलीगुड़ी में कोरोना गाईड लाइन का पालन कराने नहीं बल्कि यातायात व्यवस्था के सुचारू रुप से चले और किसी अनहोनी घटना से निपटने के लिए लगी थी। वहीं सिगींगबार बार सभ्यता में बदल रहे शहर को अब बार का संसार कहा जाय जो गलत नहीं होगा।
बदनाम गलियों में नामदारों के चर्चे
‘मधुशाला’ तो शुरू से ही बदनाम रही, पर देखा जाय तो इन्हीं बदनाम गलियों में अक्शर नामदार लोग ही मिलते हैं। हलांकि ‘मधुशाला’ का नाम बदला है, व्यापार के नए ट्रेंड के रूप में उभर रहे सिगींगबार, पब, हुक्का बार आज भी नामदार लोगों की ही पहुंच है। सिलीगुड़ी के अतीत में झांके तो करीब एक दशक पहले सालुगाढ़ा स्थित होटल गोल्डन गेट के सिगींगबार में कुछ नामदार लोगों की पहुंच होने के कारण स्थानिय लोगों ने विरोध-प्रर्दशन भी किया था, उस समय बंद तो नहीं हुआ पर नामदार लोग इससे गायब दिखने लगे। बार के रोड में तब्दील सेवक रोड पर स्थित एक बार में विरोध के बाद तोड़फोड़ की घटना में समाज के लोग सामने तो जरूर थे, पर आज उनमें से कुछ लोग इस इस व्यापार में उतरकर अपना जीवन चला रहे हैं? हलांकि यह घटना में विरोध का प्रमुख कारण पिता-पुत्र का एक साथ आना माना जाता है। लेकिन समाज के ठेकेदारों ने इस कुप्रथा को हटाने की पहल की गई। बवाल हुआ मारपीट और प्राथमिकी से लेकर कुछ लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी। वहीं आज चर्चा में बार का संसार कहा जाने वाले प्लानेट माल में एक हुक्का बार है। यह सब तो एक बानगी है, अगर वास्तव में देखाजाय तो इस बदले मधुशाला के लिए हर समाज के लोग स्वयं जिम्मेदार हैं। सफेद चादरों के बीच फैले इस काले कारोबार के लिए जितना समाजिक लोग जिममेदार हैं, वास्तव में उससे अधिक जिम्मेदार हम स्वयं हैं। इन बदनाम गलियों में रात के अंधेरे में देखा जाय जो समाजिक लोगों के साथ उच्च पदों पर बैठे तमाम अधिकारी व कर्मचारी झूमती शाम में मदिरा के साथ थिरकती बार बालाओं के हुस्न पर पैसे लुटाते नजर आएंगे। हलांकि इस नये व्यापार के ट्रेंड ने शहर के कई परिवारों के घरों में आग भी लगा दी है।
खत्म होती पारिवारिक संस्कृति
आधुनिकता के इस दौर में जहां लोग पैसे कमाने की होड़ और स्टैडर दिखाने के शनक ने आज परिवार की अपनी संस्कृति को खत्म कर दिया है। क्योंकि हम पैसे कमाने के चक्क्र में अपने परिवार पर नजर रखना भूल रहे हैं। यहीं कारण है कि बच्चों मिल रही छूट और पैसे की कमी नहीं होने के कारण इन्हीं बदानाम गलियों में नामदार बनने की कोशिश करते हैं और रात के अंधेरे में शराब के नशे में खुलेआम हुस्न का प्रदर्शन होता है।
शहर से बड़ा हो रहा बदनाम गलियों का धंधा
चिकननेक यानी सिलीगुड़ी को अगर देखा जाय तो एक छोटी सी आबादी का है। परंतु शहर में बढ़ते बार के कारोबार को देखे तो इस नगर निगम में जितने वार्ड नहीं है। उससे कही अधिक सिगींगबार, पब, हुक्का बार है.? प्लानेट मॉल की चर्चा करें तो इसमें ही करीब एक दर्जन से अधिक सिगींगबार, पब, हुक्का बार चल रहे हैं। कॉशमश माल, सीटी सेंटर अलावा में सेवक रोड, हिलकट रोड, जंक्शन पर तो बार की भरमार है। वहीं दूर दराज के क्षेत्रों में भी यह संस्कृति का विस्तार तेजी से हो रहा है।