यात्रा आप तय करें सुविधा और रफ्तार हम देगें : विनय तमांग

केन्‍द्र व राज्‍य को देना होगा गोरखाओं को संवैधानिक न्याय

हम आग से खेलते हैं, आग जलाना, आग बुझाना और उससे कोयला बनाना आता है

भारत-नेपाल मैत्री व भारत-भूटान मैत्री संधि को रद किया जाना आवश्‍यक

सुकना की सभा विमल गुरूंग की सभा का जवाब, हम गोरखाओं की मांग के लिए जान भी दे सकते हैं

‘इशारों-इशारों में विनय तमांग की सभा का मकसद साफ नजर आ रहा है। वह किसी भी हाल में विमल की सागिर्दगी में काम करना पसंद नहीं करेंगे। इसलिए अब पहाड़ा फिर से गर्म होने के संकेत साफ नजर आ रहा है। विनय तेवर साफ बता रहे रहे थे कि गोरखाओं की मांग के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं..? मसला जो भी हो परंतु संदेश साफ है और वक्‍त का इंतजार पहाड़ व तराई-डुवार्स की जनता को करना होगा।‘

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी :  बंगाल में चुनावी सागर्मियों ने रफ्तार पकड़ ली है। दस दिन पहले तृणमूल में शामिल होने के बाद गोजमुमों सुप्रिमों बिमल गुरुंग ने सिलीगुड़ी के इंदिरागांधी मैदान से हुंकार भरी तो दस दिन बाद ही गोजमुमो के दूसरे दल विनय तमांग ने सुकना के हाई स्‍कूल के मैदान से चुनौती देते हुए कहा कि हम गोरखाओं के लिए जान देने के तैयार हैं लेकिन फैसला जनता को लेना है। वह राजधानी जैसी लक्‍जरी ट्रेन से यात्रा करेंगें या पैसेंजर ट्रेन( विमल गुरुंग) से।

उन्‍होंने अपने संबोधन में बिमल पर कटाछ करते हुए कहा कि एनजेपी से नई  दिल्ली जाने के लिए कई सारी ट्रेनें हैं। उनमें एक राजधानी एक्सप्रेस है जो अत्‍याधुनिक सुविधाओं के साथ रफ्तार भी है। राजधानी एक्‍सप्रेस साफ-सुथरी होने के साथ उसमें सूप, चाय, खान-पान, बिस्तर, तकिया, चादर ओढ़ना-बिछौना सारी सुविधाएं मिलती हैं और वह मात्र 24 घंटे में ही वह दिल्ली भी पहुंचा देती है। वहीं दूसरी और नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस जो कोई खास सुविधा नहीं दिल्ली पहुंचाने में 36 घंटे लगाती है। इसी प्रकार ब्रह्मपुत्र मेल भी है जो 48 घंटे में दिल्ली पहुंचाती है और लोकल ट्रेन (पसैंजर ट्रेन) की तो बात ही छोड़ दीजिए। अब आप यह समझ लीजिए कि विनय व अनित राजधानी एक्सप्रेस है,  तृणमूल कांग्रेस नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस है। भाजपा ब्रह्मपुत्र मेल है और जो 21 अक्टूबर को आया है (बिमल गुरुंग) वह लोकल ट्रेन है। अब आप कौन सी ट्रेन में यात्रा करेंगें फैसला आप को लेना है। विनय ने कहा कि हम आपकी सेवा के लिए आपको न्याय दिलाने के लिए और गोरखाओं के हक के लिए मैं जान भी दे सकता हूं।

अपने संबोधन में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के दूसरे धड़े के नेता विनय तमांग ने दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र के गोरखाओं को संवैधानिक न्याय दिए जाने की मांग करते हुए केंद्र व राज्य सरकार पर भी निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि गोरखाओं को आजादी देनी होगी। भारत के संविधान के अनुसार भारतीय गोरखाओं को सम्मान जनक स्थान देना होगा। इसके लिए 1949 की भारत-भूटान मैत्री संधि और 1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि को रद करना होगा। गोरखालैंड के लिए गोरखाओं की पहचान के लिए, भारत-नेपाल मैत्री संधि व भारत-भूटान मैत्री संधि को रद किया जाना जरूरी है। ये संधियां जब तक रद नहीं हो जातीं, तब तक हम गोरखाओं की पहचान संकट में रहेगी।

विनय ने केंद्र की भाजपा शीर्ष नेतृत्व के साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला और भारत में सभी शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व का आह्वान करते हुए कहा कि  भारत की सुरक्षा के लिए इन संधियों को रद करना होगा। वहीं इतिहास को देखना होगा कलिम्पोंग का इतिहास देखना होगा, सिलीगुड़ी का इतिहास देखना होगा, डूआर्स का इतिहास भी देखना होगा। इतिहास की बातें मैं इसलिए कर रहा हूं कि केंद्र सरकार भी इससे अवगत हो। इस क्षेत्र में कभी भी कोई खतरा उत्‍पन्‍न हो सकता है, जो दिख रहा है। 1919 में भारत में कुल आठ क्षेत्र आंशिक बाहरी क्षेत्र (पार्शियली एक्सक्लूडेड एरिया) थे, फिर बाद में ऐसे क्षेत्रों की संख्या और 28 बढ़ गई, कुल 36 ऐसे क्षेत्र हो गए। 1935 से लेकर 1947 यानी भारत की आजादी तक ऐसे अनेक क्षेत्रों ने संवैधानिक न्याय पा लिया। मगर, हम गोरखाओं के दार्जिलिंग पहाड़, तराई व डूआर्स क्षेत्र का संवैधानिक न्याय अभी तक नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार केवल कश्मीर, अरुणाचल और मणिपुर को ही देखती है, उसे दार्जिलिंग पर भी नजर देना होगा। यह भी संधि बाध्य क्षेत्र है। यहां भी संवैधानिक न्याय होना चाहिए। जब तक यहां संवैधानिक न्याय नहीं हो जाता, तब तक हम दूसरे दर्जे के नागरिक ही रहेंगे। इसीलिए संवैधानिक न्याय आवश्यक है। उन्होंने अपने ही दल की मुख्‍यमंत्री से अनुरोध करते हुए कहा कि नॉर्थ-ईस्ट में सात राज्य 'सेवेन सिस्टर' के लिए अलग से नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल है। वे राज्य उसी के माध्यम से अपने विकास का काम करते हैं। इधर, 1975 में जो एक देश सिक्किम भारत गणराज्य का अंग बना, उसे भी 2002 में नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल का बनाया दिया गया। सिक्किम एक तरफ है और बाकी सातों राज्य दूसरी तरफ, उन सभी के लिए अलग से नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल है। लेकिन अफसोस इस सभी के बीच में स्थित पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग को उससे अलग रखा गया है। यह कैसे रखा जा सकता है। इसलिए दार्जिलिंग को भी नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल में शामिल करना होगा। दर्जिलिंग के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा दार्जिलिंग को नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल में जोड़ें। यह  गोरखाओं की पहचान व अस्तित्व के लिए यह जरूरी है, वहीं सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस दिशा में ध्यान दें। गोरखाओं के संवैधानिक न्याय के लिए हमने जो मांगें की हैं उसे पूरा करवाएं। उन्‍होंने कहा कि हम से राज्य सरकार द्विपक्षीय वार्ता करे, केंद्र सरकार त्रिपक्षीय वार्ता करे, यह विनय तामंग या अनित थापा की नहीं बल्कि गोरखाओं की मांग है। हम कोई हड़ताल नहीं करेंगे, कोई अराजकता नहीं फैलाएंगे, बौद्धिक आंदोलन करेंगे और हमारे पीछे पूरा थिंक टैंक है। वहीं मैं नेशनल फोरम फॉर नॉर्थ-ईस्ट में भी अपने गोरखाओं के मुद्दे रखूंगा। इसके साथ ही दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, तराई व डूआर्स क्षेत्र के मुद्दे उठाऊंगा। इस क्षेत्र को संवैधानिक न्याय देने के लिए नरेंद्र मोदी को सोचना होगा। अन्‍यथा 2021 के मई महीना में वोट मांगने आने से पहले गोरखाओं के हक के लिए काम करके दिखाएं। अभी हमारे हाथ में छह महीना समय है और हम कुछ भी फैसला ले सकते हैं। राजनीतिक पार्टियों को आधुनिक बनना होगा। हम सत्ता नहीं, यहां की जनता का उद्धार और मुक्ति चाहते हैं। छह महीना समय है, न्याय कर दो, अन्यथा, यहां का चुनाव कुछ भी हो सकता है। हम निर्णय कुछ भी ले सकते हैं। यहां की जनता कुछ भी निर्णय ले सकती है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि हम उत्तर बंगाल में आग बुझाने वाले फायर ब्रिगेड हैं जबकि । बिमल गुरुंग पर निशाना साधते हुए कहा कि जो आदमी पहाड़ में फिर से आया है वह आग लगाने वाला है और जिसके कारण पहाड़ा की फिंजा खराब रही। विनय ने चेतावनी देते हुए कहा कि जो आग बुझाना जानता है, वह आग लगाना भी जानता है। हम आपको अलंकार में समझाते हैं। दार्जिलिंग पहाड़ में इन दिनों ठंड का मौसम है। पहले जब हम ढिबरी-बाती जला कर पढ़ते थे तब ठंड के मौसम में मां 'घूर' लगाती थी। 'घूर' की आग फूंक देती थी। उस पर पानी गर्म करने के लिए कढ़ाई भी चढ़ा देती थी। हम आग भी तापते थे। फिर पानी डाल कर उसको बुझा देती थी। उससे कोयला बन जाता था। उस कोयले का अंगीठी में इस्तेमाल करती थी। हम वही घूर की आग हैं। हमें बुझा कर कोयला भी बना दोगे तो फिर हम अंगीठी में जलेंगे।