साधना की शख्शियत-27

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: ये सपनों की दुनियां है जनाब, हर कोई अपनी मंजिल पाने के सपनें तो देखते है, परंतु सफलता मन की लगन और निरंतर प्रयास और सच्‍चे सर्मपण से मिलती है। सर्मपण अगर सहीं हो तो सपनों का शौक, या शिक्षा पाने की चाहत, लगन से ही पूरा करने का सशक्‍त माध्‍यम है। ये बात अलग है पूरा होने में समय लगता है, परंतु पूरा जरूर होता है। अक्‍शर देखा जाता है कि व्‍यक्ति कोशिश करता है, परंतु निराशा हाथ लगती है, वह फिर रास्‍ते बदल देता है। लेकिन युवा काव्‍य रचनाकारों को सलाह है, कि अपनी मंजिल को ओर बढ़ते रहे, ये जरूरी नहीं सफलता एक दिन में मिलेगी, परंतु अगर उनकी ‘’ साधना की शख्शियत’’ बरकरार है तो सफालता अवश्‍य उनके कदम चूमेगी। बंगाल में हिन्‍दी साहित्‍य के प्रति प्रेम और लोगों में जागरूकता देखने को मिल रही है। साहित्‍य में काव्‍य के प्रति रूझान दिखई दे रहा है, जिसका श्रेय ‘’महिला काव्‍य मंच’’ को जाता है।    ‘’ पढ़ने का शौक मुझे बचपन से ही रहा, क्योंकि जीवन में शिक्षा ही एक ऐसा साधन है, जो हर एक को सही और गलत रास्‍ते के फर्क दिखा कर सही दिशा प्रदान करता है, और मंजिलो तक पहुँचाता है। हलांकि‍ बचपन की दुश्‍वारियां के बीच शिक्षा ग्रहण करने का सपना था, जो अब धीरे-धीरे पूरा होते दिखाई दे रहा है। स्‍नातक की शिक्षा के बाद एक स्‍कूल में शिक्षण कार्य शुरू किया। इस दौरान शिक्षण कार्य के बीच काव्‍य रचनाएं लिखती रहतीं हूं। बचपन से कहानी कविताओं को पढ़ने के बाद एक ललक थी, काव्‍य के सपनों की मंजिल को छूने की तमन्‍ना, सफलता और असफलता की परवाह किए बिना मैं मंजिल को बढ़ रही हूं, और अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास जारी है।‘’ माधुरी पाण्डेय, सिलीगुड़ी

एक नयी उड़ान भरने की....

एक चिड़िया भरना चाहती थी उड़ान,

खुले आसमान में, अपने सपनों के जहान में,

बेखबर थी परिवार समाज, दुनिया के उसूलों से

अपनी मस्त-मगन इच्छाओं में।

हर पग-पग परकोशिश थी, और है भी,

चिड़िया के पंख काटने की और पैरों में बंधन डालने की ।

फिर भी, वह उड़ती रहती  अपनी मंजिल पाने की  तलब में,

हर रोज उसकी कोशिश रहती , एक नयी उड़ान भरने की ।