साधना की शख्शियत-26

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी: सपनों की मंजिल एक दिन में नहीं पूरी होते, उसे पूरा करने का संकल्‍प अगर सच्‍चा है तो सपनें की मंजिल एक ना एक दिन मिल ही जाती है। हलांकि सपनें एक दिन में देखने से पूरे नहीं होते बचपन की चाह और युवाअवस्‍था में किए गए अथक प्रयास से सफलता मिलती है। हलांकि किसी भी इंसान में जीवन के मंजिल की योजनओं का खाका बचपन से मन में खींचा होता है, और उसे पूरा करने के लिए हर कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए जीवन के पथ पर अग्रसर होता है, वहीं होती है असली ’’साधना की शख्शियत’’। सपनों को मंजिल तक पहुंचाने का जूनून और हौसला बुलंद हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में सपनों को हकिकत में बदल कर जीत का परचम लहरा सकता है। "गर हौसले बुलंद  है तो तू हर मुकाम पाएगा, जीवन के संघर्षों को जीतता चला जाएगा। हिन्दी माध्यमिक स्‍कूल में हिन्दी शिक्षका के रूप में सेवा के साथ अब तक का सफर संघर्षमय रहा किंतु 'जहां चाह वहाँ राह' की भावना लेकर मंजिल की ओर बढती रही । विवाह पश्चात लड़कियां पढ नहीं सकती ऐसी कुछ मान्‍यताएं है, लेकिन माता-पिता और परिवार का जो साथ मिला तो सपनों के उड़ान को मंजिल मिल गई।  कॉलेज के दिनों से शायरी, गजल में दिलचस्पी थी वहीं से मैंने लिखना प्रारंभ किया । विवाहोपरांत गृहस्थी के तमाम उलझनों के बीच भी मन की भावनाओं के पुंज से भावों को लेकर लिखती रही और इस प्रकार मेरे सृजनशीलता को गति मिली।‘’ मीनू शर्मा, सिलीगुड़ी

हौंसले की उड़ान

पिंजरे की तन्हाई की वो दास्तान परिन्दे से पूछो तो सही,

खुला गगन,मन्द-मन्द पवन, उसे अच्छा लगता है के नहीं!

हर चीज़ मिल जाती है, पिंजरे में उसे खाने को,

फिर भी फड़फड़ाता है, अपने पंख

मन करता उसका बाहर जाने को।

निष्ठुर इस दुनिया को भाता नहीं

उसका स्वछंद विहार, कतर देता है पर उसके,

मजबूत करता पिंजरे में जीने को।

किंतु हौसला कम नहीं होता, ऊँची उड़ान भरने की।

सिखाता हमे जरुरत नहीं किसी से डरने की।

अपने हौसलो के पंख से भरता है खुद में जान,

पंक्तिबद्ध हो अपनो संग खुले में उड़ने का अरमान।

देता है संदेश यही उठ कर गिरना

गिरकर उठना, यह तो है दस्तूर।

बुलंद हौसलो के संग बढ़ते रहना जरूर।