साधना की शख्सियत-1

रेत सी जिंदगी
 
न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः बिहार के माटी की महक की प्रतिभा आज बंगाल में काव्य के क्षेत्र में अहम मुकाम बनाने को बेकरार है, किचन और काव्य के अनूठे मिश्रण 'रूबी प्रसाद' की रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन के लिए स्थान मिला है। मोहनलाल जैन सम्मान से सम्मानित, लाल बहादुर शास्त्री सम्मान एवं महाश्वेता देवी सम्मान से एवं क्ई सम्मानों से सम्मानित । बीस से अधिक साझा संकलन में रचनाओं का प्रकाशन ।
"लेखन मेरे लिए एक विधा ही नहीं है बल्कि एक साधना, मन की पुकार जिसके द्वारा निरंतर मेरी कोशिश रहती है कि जो लोग कह नहीं पाते उन भावों को शब्दों का रूप देकर किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकूं । दो साल पहले मैंने लिखना आरंभ किया और जब भावनाओं को जब शब्दों के रूप में पिरोने की कोशिश की तो, बहुत सी रुकावटें आयी पर उन रुकावटों ने हमेशा ही आगे बढने के लिए प्रेरित किया"
रूबी प्रसाद
सिलीगुड़ी
रेत सी जिंदगी
बंद मुट्ठी से
रेत सी फिसलती "ये जिन्दगी "
चुपके से कानों में है कहती
मैं गुजर रही हूँ
तुम्हारी बंद मुट्ठी से फिसल रही हूँ
चाहो तो मुझे रेत की तरह
क्ई रूपों में ढाल सजा लो अपने हर एक पल को
या फिर जाने दो फिसल मुझे !
या तो दुखों और तकलीफो से तपा कर अपने कर्मों को
या तो निखार दो मुझे
या फिर बस दुख के बोझ से ढह जाने दो मुझे यूँ ही "बेमकसद बेमतलब"
कभी_कभी जब भटकने लगता है मन
जिन्दगी की उलझनों से
और हम चल पडते है गलत राह पर
तब फिर चुपके से कानों में कहती है जिन्दगी
मैं तुम्हें नहीं" ,"तुम मुझे जी रहे हो" _
रेत की तरह जो
धूप में तप जाती हैं और छाव में हो जाती हैं शीतल
ठीक वैसे ही
मैं भी कर्म का रूप धर करती हूँ प्रवेश
तुम्हारे मन में
ताकि परख सकू मैं तुम्हें
और कर सकू तुम्हारे चरित्र का आकलन
ताकि जब जी लो तुम मुझे तो
तुम्हारे अंत के समय में
दिखा सकूं तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व का आइना !