माल महराज का मिर्जा खेले होली

हाल कोहिनूर टी स्टेट

किसी भी सरकारी मद का भुगतान नहीं, दो वर्षो में कंपनी पर चार करोड़ का कर्ज बढ़ा : सागरमल अग्रवाल

मजदूरों के किसी मद का भुगतान नहीं, उपर से नक्शली हमले की धमकी : ओमप्रकाश उपाघ्याय

प्री लाकडाउन की नोटीस के बाद चाय बगान को लेकर चालने की कोशिश

न्यूज भारत, सिलीगुड़ी : कोहिनूर टी गार्डन के निदेशक की मजबूरियों  का फायदा उठाते हुए नवंबर 2018 में केशव सिन्हा  ने इस बगान को लीज पर लिया था। लीज के बाद से ही कोहिनूर टी गार्डन और उसके मजदूरों की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर होने लगी। जबकि लीज एग्रीमेंट के नियमो का पालन नहीं करने की दशा में पुराने निदेशक मंडल ने कोहिनूर टी गार्डन को अपने कब्जे में लेकर चलाने की बाद ममला गरम हो गया है। निदेशक मंडल और टी गार्डन के मजदूरों का आरोप है, कि जबसे बगान को एसएसएस एण्डा संस एडवेंचर प्रा.लि. के निदेशक वैभव सिन्हा  व कार्यकारी निदेशक केशव सिन्हा  ने लिया है। उसी समय से बागान की फिक्स संपत्ती को बेचना शुरू कर दिया और सरकारी मद में होने वाले भुगतान को भी नही किया। जिसके कारण मजदूरों के हक को भुगतान नहीं करने पर बगान की स्थिति दयनीय हो गई। इसके बाद पुराने निदेशक मंडल ने बगान को अपने कब्जे  में लेकर चलान शुरू कर दिया है। जिससे बगान के मजदूरों मे खुशी है। बगान के मजदूरों का आरोप पर सिर्फ बगान में घाटा दिखाकर कोई भुगतान नही किया। जबकि दो वर्षों के दौरान चाय के उत्पादन अनवरत होता रहा। यह कहावत आज सही हो गई कि ‘ माल महराज का मिर्जा खेलें होली’ मतलब कि उक्त चाय बगान की कमाई का कोई भुगतान नहीं करके सिर्फ अपनी जेब भरी गई। उक्त बातें टी गार्डन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुराने निदेशक सागरमल अग्रवाल व ओम प्रकाश उपाध्याय ने कही। पत्रकारों से निदेशक सागरमल अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 2017-18 मे कुछ निजी समस्या के कारण उक्ते बगान को केशव सिन्हा को कुछ शर्तो पर पांच वर्ष के लिए लीज पर दिया गया था। लेकिन इस दो वर्षो के दौरान श्री सिन्हा ने ना ही कोई शर्त पूरी कि बल्की बागन की फिक्स  संपत्ती  को इधर से उधर करना शुरू कर दिया। इतना नहीं बगान के पेडों बेचने के सा‍थ-साथ, मजदूरों के बोनस, ग्रेच्यूनटी व अन्य उनके हक को भी नहीं दिया। वहीं बीते माह जब उन्हों ने प्री-लाकडाउन की नोटीस दिया तो इस मामले को संज्ञान में लेते कानूनी कार्यवही के लिए बाध्या होना पड़ा। श्री सिन्हा ने बगान का पूरी तरह खत्म  करने के साथ-साथ नक्शरली हमले की धमकी भी देने लगे। वहीं आज के दौरा में बागान पर करीब चार कारोड़ से अधिक कर्ज को बोझ चढ़ गया है। तब हम लोगों ने मजदूरों को भुगतान कर एक माह से बगान को बेहतर ढ़ग से चला रहे है। पत्रकारों को संबोधित करते हुए निदेशक ओमप्रकाश उपाध्यागय ने कहा कि बगान को बर्बाद होते देखकर हम लोगों ने पहले प्रशासन को सूचीत किया है। इसके बाद बगान के मजदूरों की स्थित देखने के बाद ही बगान को चलाने के लिए कब्जे में लिया गया है। उन्होने कहा कि जब बगान का एग्रीमेंट किया गया था, तो उस समय एग्रीमेंट में बगान के किसी भी फिक्स संपत्ती  को बेचा नहीं जाएगा। बगान के मजदूरों के बोनस, ग्रेच्यू‍टी, ईएसआई समेत अन्यग भुगतान केशव सिन्हाू की कंपनी को करना है। लेकिन उन्होंने इस दो वर्षो में कोई भुगतान नहीं किया गया। इसके अलावा बगान के ट्रांसफार्रमर का पता नहीं, बगान से पेड काटे जाने लगे, साथ ही बगान का घाटा दिखाकर मजदूरों के हक को भी मार दिया गया। साथ ही एग्रीमेंट में निदेशक मंडल को दिये जाने वाले भगुतान को नहीं दिया। एग्रीमेंट के नियमों के पालन नहीं होने के बाद निदेशक मंडल ने बगान व यहां मजदूरों के हित को देखते हुए उक्त फैसला लिया है। इस आशय की जानकारी राज्य सरकार, प्रशासन और केन्द्रीय संस्थाओं को देने के बाद बगान को सुचारू रूप चलाया जा रहा है। श्री उपाध्याय ने कहा कि जब बगान की हालत खराब हो गई तो श्री सिन्हा ने प्री-लाकडाउन की नोटिस दिया और बगान को बंद करने  की कोशिश मे जुट गए तब हम निदेशक मंडल ने यह फैसला लिया, क्योंकि बगान बंद होने से करीब 15 सौ मजदूर बेरोजगार हो जाते।  वहीं गत दिनों सिलीगुड़ी में पत्रकारवार्ता के दौरान श्री सिन्हा ने कंपनी के निदेशक मंडल पर चाय चोरी आरोप लगाते हुए धमकी दिया की यह चोरी की चाय को बेचा जा रहा है। वहीं सभी चाय खरीदने वाले और बेचने वालों पर मामला दर्ज किया जाएगा। जबकि बगान को पुन: जीवित करने की प्रक्रिया के दौरान पूजा पर मजदूरों को 18 प्रतिशत मजदूरों बोनस दिया गया और बगान को चालाने की कोशिश शुरू कर दिया गया ।  इस संबंध मे जब केशव सिन्हाा के मोबाइल पर संपर्क किया गया तो वह फोन नहीं उठाया।    उधर बगान के मजदूरो का आरोप है कि केशव सिन्हा ने इस दो वर्षो के दौरान चाय को बेचते रहे, पर हम लोगों को मिलने वाली सुविधाओं की कटौती के साथ किसी भी तरह का भुगतान नहीं किया। जबकि चाय का उत्पादन तो होता रहा। जब भी मजदूर हक की मांग करते हैं तो घाटा दिखाकर उन्हें मना कर दिया जाता रहा है।