बेहतर सामजिक कार्यो के लिए मिली डाक्टोर की उपाधी, आजीवन समाज की सेवा में लगा रहूंगा : रमेश साह
न्यूज भारत, सिलीगुड़ी : उत्तटर बंगाल के वादियों में जन्मेंन रमेश साहरहूंगा की उड़ान पहाड़ों की रानी से शुरु होकर उनके बेहतर सामजिक कार्यो के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू जेरुसलेम मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (भेलौर तामिलनाडु) ने डाक्टफर की उपाधी से नवाजे गए हैं। हलांकि प्रदेश की सरकार से सम्माटन पाने का सपना आज भी अधूरा है। श्री साह साउथ से सम्मािनित होकर लौटने के बाद बताया कि ‘ आज से मेरे नाम के आगे डाक्टर जुड़ गया। यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू जेरुसलेम मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (भेलौर तामिलनाडु) के द्वारा सामाजिक क्षेत्र में मेरा विशेष योगदान को देखते हुए मुझे डाक्ट्रेट का उपाधि से नवाजा गया। सब्र का फल मीठा होता है। मैंने हमेशा पीड़ित और उपेक्षित लोगों निस्वार्थ मदद की है। और ये काम आज भी जारी है और मेरे जीवन के अंतिम तक रहेगा।‘
बंगाल में मेरी कला को नहीं मिला मुकाम
मेरी कलाकृतियों को जहां देश-विदेश में अलग पहचान मिल रही है। वहीं बंगाल व देश की सरकारों ने कोई तवज्जोंा नहीं दी। जिसका दर्द श्री साह के चेहरे पर झलक रहा था। उन्हों ने बताया कि करीब 2000 से अधिक मेरी कलाकृतियां नष्ट होने के कगार पर है। जिसमें नाखून, चावल के दाने पर बनी है। इसमें दहेजप्रथा, एंटीड्रग, सर्जिकल स्ट्रासईक, भारतीय सेना, भ्रुणहत्याे, पुलवामा हमला, ताज महल, मुम्बतई अटैक, ताज महल, देश के नामी नेताओं में प्रणव मुखर्जी, अटल बिहारी बाजपेयी, नरेन्द्र मोदी समेत विभिन्न नेताओं की तस्वींरों को उकेरा है।
दर्जिलिंग के भानुभक्ति भवन से भरी सपनों की उड़ान
मेरी नजर बचपन से वहुत तेज थी, छोटी से छोटी से वस्तुी विना चश्मेट के देखता था, और लिखता रहा। मैं धीर-धीरे कला और आर्ट के क्षेत्र में अपना काम शुरू किया और आकृतियों को मूर्तरूप देने लगा। वर्ष 1982 में जब दार्जिलिंग के भानुभक्तआ भवन में राष्ट्रीलय स्त9र की चित्रकला प्रर्दशनी लगी, जिसका उद्घाटन तत्काकलिन राज्येपाल बीडी पाण्डेतय ने किया था। उस प्रर्शशनी में मुझे भी स्था न मिला और लोगों ने मेरी कलाकृतियों को सराहा और स्था नीय स्तार पर पहचान मिलनी शुरू हुई। इसके बाद हम अपना रूख नेपाल की ओर किया। जहां पर तिब्ब तियन आर्ट (थंका) में कुछ करने का अवसर मिला जहां से हमने माइक्रोआर्ट की शुरूआत की। हमारी कला के चित्रण को जब पहली बार 1984 में दैनिक बसुमति में मेरी छपी तो मुझे उड़ने के लिए और पंख लग गए। उसके बाद 2001 में तालकटोरा स्टेेडियम में लगे एग्जीएवेशन में भी मेरी कला को स्थाबन मिला था। इसके बाद उनके बेहतर सामजिक कार्यो को देखते हुए आज डाक्टघर के सम्मा न से नवाजे गए हैं।