विलुप्त होने के कगार पर हिमाचल की छोटी काशी

संकट में हिमाचल के श्रेष्ठ धरोहर

पांडवों के अज्ञातवास की धरोहर है हिमाचल का काशी विश्वणना‍थ

ग्यारह मंदिरों के आधार पर एकादश रुद्र के प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद

आस्थाह और पर्यटन का केन्द्रा बन सकाता है, पांडव कालीन शिव मंदिर

जगदीश शर्मा, मंडी हिमाचल प्रदेश

देवभू‍मि की धरती हिमाचल की वादियां आस्था  और आध्या्त्म केन्द्रद है। पहाड़ों की खूबसूरत वादियां जहां अपनी वाहें फैलाए पर्यटकों के स्वाूगत के लिए तैयार रहती है। वहीं सनातनी परंपरा का केन्द्रव बिंदु भी धरती पर कही है तो हिमाचल में । समृद्ा्ी  ऐतिहासिक इतिहास लिए वादियों की फिजां भी देवभूमि में अनेक धरोहर है, जो देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आस्थाी और विश्वाेस का केन्द्रर बना है। लेकिन संरक्षण के कारण कई ऐतिहासिक धरोहर आज विलुप्तं होने के कगार पर है, उन्हीई में से एक है पांडवों के अज्ञातवास के दौरान विश्राम स्थकल घाड़। महाभारत काल की बात करें तो पांडवों के अज्ञातवास के ज्याअदातर समय हिमाचल में रही है। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग क्षेत्र में हर गांव में अपने आप में एक देवभूमि की अलग पहचान है। जिसकी समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है। इनमें कुछ ग्रामदेवता दूसरे गांव की श्रद्धा और आस्था के प्रतीक है। इसी कारण आज वैदिकरूप से इन गांवों का अस्तित्व भी है । ऐसे ही एक प्राचीन गांव है जो पांगणा उप-तहसील के परेसी पटवारवृत का यह गांव पांगणा और मशोग पंचायत की सीमा से सटा गांव है घाड़। जो पांडवकालिन इतिहास को समेटे आज उपेक्षा का शिकर है। जिसके कारण पांडवकालिन ऐतिहासिक विरासत विलुप्ते होने के कगार पर है।

यहां जाने के लिए पांगणा से घाड़ तक बस से या छोटी गाड़ियों से पहुंचा जा सकता है। घाड़ गांव में पांडव कालीन शिव मंदिर प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक शांति व श्रद्धा का केन्द्र रहा है। एक किंवदंती के आधार पर सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली का कहना है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँपर कुछ समय रुके। एक रात इस स्थान पर 80 शिवलिंग स्थापित कर 81वे शिवलिंग की ज्यों ही स्थापना करने लगे तो गांव की एक महिला धान कूटने जाग गई। पांडवों ने इसे अशुभ संकेत मानकर 81वे शिवलिंग को स्थापित नहीं किया। पांगणा उप-तहसील के साथ करसोग-निहरी तहसील क्षेत्र के लोगों में यह स्थान आज भी छोटी काशी के नाम से श्रद्धा का केन्द्र है। घाड़ी में  शिकारीदेवी की चरणगंगा रुपी पांगणा खड्ड के दाएँ तट पर कुछ दूरी  पर पांडवो द्वारा स्थापित विश्वनाथ का यह शिव मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर अब खंडहर के रुप में अपने गौरवपूर्ण इतिहास को अपने में समाए है। खंडहर में बदल चुकी इस अमूल्य धरोहर को देखकर लगता है कि यहां कभी शिखर शैली के मंदिर थे। इस पावन तीर्थ में वर्तमान  में मौजूद आमलको को आधार मानें तो ग्यारह मंदिरों के आधार पर एकादश रुद्र के प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं। हिन्दू संस्कृति के अतीत को देखने की दृष्टि प्रदान करने वाली भद्रमुख की मुस्कुराती दुर्लभ प्रस्तर प्रतिमा बहुत ही अलौकिक,आकर्षक,खूबसूरत और अद्वितीय है। व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमित गुप्ता,संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा, सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा का कहना है कि आजादी के बाद 73 से अपने जीर्णोद्धार की बाट जोहते घाड़ी शिवालय की कलात्मक कलाकृतियों,मूर्तियो के विधिवत संरक्षण के लिए पंचायतों,स्वयंसेवी संस्थाओं सरकार या प्रशासन ने आज तक कोई ईमानदार प्रयास किया हो, ऐसा प्रत्यक्ष तो घाड़ी शिवालयों में कुछ दिखता ही नहीं सिवाए आधुनिक सराय भवन निर्माण के। पुरातत्व,भाषा-कला और संस्कृति विभाग को इस प्राचीन स्थल के संरक्षण व विकास के लिए गांव वाले एक लंबे अरसे से निहार रहे हैं। मंदिर की व्यवस्था के लिए समिति का गठन किया गया है। किरपा राम समिति के प्रधान, गुरुदत्त उप-प्रधान, दयाराम सिंह सचिव,दुर्गा दास शर्मा कोषाध्यक्ष,लीलाधर शर्मा,देशराज शर्मा,सोहन सिंह और दूर्गा दास शर्मा पुजारी,टेकचंद वरिष्ठ कार्यकारी सदस्य है। इन सभी सदस्यों ने जन सहयोग से इस मंदिर के पुरातन शैली में निर्माण का बीड़ा उठाया है। मंदिर में सुबह शाम पूजा होती है।हर संक्रांति को विशेष पूजा का आयोजन होता है। वर्ष के दोनों नवरात्र,वैशाखी,शिवरात्रि,नाग पंचमी को श्रद्धालुगण शिव के दर्शनार्थ समूहों में आकर तथा यज्ञ-हवन मे शामिल होकर अपनी मनोरथ कामनाएँ पूरी करते हैं। शिवालयों के साथ नाले में पानी की एक बावड़ी है। पास ही रंडौल में एकाधिक प्राचीन बावड़ियाँ हैं।इन्ही में से एक बावड़ी के जल से शिव का दैनिक अभिषेक किया जाता है। इन बावड़ियों के आस-पास खुदाई करने से जहां मूर्तियाँ निकलती हैं वहीं विषैले सांप भी प्रकट होते हैं। प्राचीन संस्कृति शिल्प कला और पांडवकालीन इतिहास से जुड़ा घाड़ी मंदिर शांत एकांत अप्रतिम सौंदर्य से पूर्ण है। चारों ओर फैली हरियाली,कुछ दूरी पर नीचे बहती पांगणा खड्ड तथा दूर-दूर तक फैली घाटी को देखते ही श्रद्धाल और पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं ।