इतिहास की परीक्षा में नकल, बदल गया भूगोल

मिरिक कालेज में इतिहास का चिट मेरे जीवन का टर्निंग प्‍वांइट : रमेश साह

दर्जिलिंग के भानुभक्‍त भवन से भरी सपनों की उड़ान, आज माइक्रोआर्ट में मिली अलग पहचान

बंगाल में मेरी कला को नहीं मिला मुकाम, सम्‍मान को तरस गया अर्तंराष्‍ट्रीय स्‍तर का कलाकार

नष्‍ट हो रही कलाकृतियों को बचाने की कोशिश, एक अदद म्‍यूजियम बनाने का सपना भी अधूरा

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

दार्जिलिंग की खूबसूरत वादियों का एक शहर मिरिक ! जहां चाय की सोधी खुश्‍बु है, पहाड़ों और बादलों के बीच अठखेलियां करते देवदार के पेड़ ! और ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच कभी ठंडी तो मदमस्‍त फागुनी बयार दिल और दिमाग दोनों को दिवाना कर देती है। इन्‍ही वादियों की गोंद में पैदा हुआ, पला बढ़ा एक माईक्रो आर्ट का सितारा जो जो आज देश-विदेश में अपनी कला कृतियों से एक अलग पहचान बन गया रमेश साह का। कहतें हैं नकल में भी अकल की जरूरत होती है, उसी नकल से रमेश के जीवन का भूगोल बदल गया। श्री साह ने बताया कि मैं मिरिक स्‍कूल में इतिहास की परीक्षा देते वक्‍त जो चिट से नकल कर रहा था, और पकड़ा गया। क्‍योंकि इतिहास के परीक्षा की तैयारी नहीं की दूसरे दिन पेपर था। क्‍या करूं इसी उधेड़-बुन में लगा रहा। फिर दिमाग में नकल करने बात सुझी, और तैयारी करते हुए देर रात को एक पेज जो सबसे छोटा पेपर जो हाथ में बैठ जाय उस पर पूरा पेज उतार दिया। परीक्षा शुरू हुई और चिट निकाल कर लिखने लगा। मेरे परीक्षक वर्तमान में जीएन प्रधान (जो अब स्‍वर्गवासी हैं) ने पकड़ लिया। उन्‍होंने पूछा ये क्‍या है मैं बेबाकी से बोला चिट है सर नकल कर रहा। पकड़ कर अन्‍य टीचर के पास गया पर किसी के समझ में नहीं आया कि उस पर लिखा क्‍या है। पूछा क्‍या है मैं बोल दिया इस पेज को उतारा हूं। चिट देखकर सभी टीचर आर्श्‍चय चकित रहे गए और मुझे छोड़ दिया गया। फिर मैं सोचा कि सर सही कह रहे और उसी इतिहास के परीक्षा ने मेरे जीवन के भूगोल को बदल दिया ! और मेरे जीवन का यही टर्निंग प्‍वांट रहा जो कला के क्षेत्र में प्रवेश कर गया।

  दर्जिलिंग के भानुभक्‍त भवन से भरी सपनों की उड़ान

 मेरी नजर बचपन से वहुत तेज थी, छोटी से छोटी से वस्‍तु विना चश्‍मे के देखता था, और लिखता रहा। मैं धीर-धीरे कला और आर्ट के क्षेत्र में अपना काम शुरू किया और आकृतियों को मूर्तरूप देने लगा। वर्ष 1982 में जब दार्जिलिंग के भानुभक्‍त भवन में राष्‍ट्रीय स्‍तर की चित्रकला प्रर्दशनी लगी, जिसका उद्घाटन तत्‍कालिन राज्‍यपाल बीडी पाण्‍डेय ने किया था। उस प्रर्शशनी में मुझे भी स्‍थान मिला और लोगों ने मेरी कलाकृतियों को सराहा और स्‍थानीय स्‍तर पर पहचान मिलनी शुरू हुई। इसके बाद हम अपना रूख नेपाल की ओर किया। जहां पर तिब्‍बतियन आर्ट (थंका) में कुछ करने का अवसर मिला जहां से हमने माइक्रोआर्ट की शुरूआत की। हमारी कला के चित्रण को जब पहली बार 1984 में दैनिक बसुमति में मेरी छपी तो मुझे उड़ने के लिए और पंख लग गए। उसके बाद 2001 में तालकटोरा स्‍टेडियम में लगे एग्‍जीवेशन में भी मेरी कला को स्‍थान मिला था।

बंगाल में मेरी कला को नहीं मिला मुकाम

मेरी कलाकृतियों को जहां देश-विदेश में अलग पहचान मिल रही है। वहीं बंगाल व देश की सरकारों ने कोई तवज्‍जों नहीं दी। जिसका दर्द श्री साह के चेहरे पर झलक रहा था। उन्‍होंने बताया कि करीब 2000 से अधिक मेरी कलाकृतियां नष्‍ट होने के कगार पर है। जिसमें नाखून, चावल के दाने पर बनी है। इसमें दहेजप्रथा, एंटीड्रग, सर्जिकल स्‍ट्राईक, भारतीय सेना, भ्रुणहत्‍या, पुलवामा हमला, ताज महल, मुम्‍बई अटैक, ताज महल, देश के नामी नेताओं में प्रणव मुखर्जी, अटल बिहारी बाजपेयी, नरेन्‍द्र मोदी समेत विभिन्‍न नेताओं की तस्‍वीरों को उकेरा है।      एक अदद म्‍यूजियम बनाने का सपना भी अधूरा

श्री साह ने बताया कि मैं इस कला से युवाओं को प्रेरित करने और सीखाने के लिए एक अदद म्‍यूजियम बनाने का सपना भी पिछले दस वर्षो से अधूरा है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी सफलता नहीं मिली। अगर मिली होती तो आज और भी युवा माईक्रोआर्ट के लिए आगे आते और देश-विदेश में अपना नाम रौशन करते।

सम्‍मान पाने के सपना बना ख्‍वाब

मालूम हो कि इनकी चित्रकला को देखते हुए इन्‍हें भी राज्‍य सरकार और केन्‍द्र सरकार से सम्‍मानित होने की बात तो दूर, सरकारें उन्‍हे आज तक किसी भी तरह के पुरस्‍कार से सम्‍मानित करने की जहमत नहीं उठाई। जबकि इनकी कला को राज्‍य सरकार के साथ केन्‍द्र सरकार से सम्‍मान पाने का हक तो बनाता ही है।