बचपन में पैर टूटने से हुई दिव्यांग, सपने पूरा करने का जज्बा दिखा पूजा में
श्रवण की भूमिका में मां, बचपन से स्कूल ले जाने व लाने का उठाया वीणा
संसाधनों की कमी व गरीबी के बीच आईएएस बनने का सपना देख रही पूजा सिंह
बहन की पढ़ाई के लिए नाबालिक भाई ने छोड़ा स्कूल, नौकरी करने गया गुजरात
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
जिंदगी में अगर हौशले हैं, तो हर उड़ान मुमकिन है। सपनों के उड़ान की सही जिज्ञासा हो, और गरीबी में होठों पर मीठी मुस्कान हो, मन में विश्वाूस है तो सफलता एक दिन सपनों को पूरा करती है। महान वैज्ञानिक डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था, ‘सपने ओ नहीं होते जो सोने में देखा जाय, सपनें ओ होते हैं जो सोने ना दे,। आज उन्हीं के बातों को आधार मानते हुए सिलीगुड़ी के चांदमुनि चाय बगान (जो अब उत्तरायण) की बेटी सपनों को पूरा करने लिए दिव्यांगता और गरीबी को मात दे रही है। माटीगाड़ा के डिब्रु लाईन चाय बगान की बेटी पूजा सिंह।
हलांकि पूजा सिंह बचपन से दिव्यांग है, पर पढ़ने का जज्बा है। मां मीना सिंह ने बताया कि बचपन से अपने पैर पर खड़ी नहीं हुई। एक दो बार चलने का कोशिश में पैर टूट गया। डाक्टर ने आपरेशन को बोला पर शायद गरीबी ने रोक दिया और आज तक चल नहीं सकी। अपने पैर पर खड़े के बारे में पूजा ने मुस्काराते हुए कहा कि ‘मैं बचपन से चल नहीं सकी’। कक्षा एक से लेकर चौथी तक राज लक्ष्मी स्कूल में मां सुबह लेकर स्कूल जाती थी और कक्षाएं खत्म् होने के बाद लेकर घर वापस आती थी। उसके बाद 5वीं से 8वीं तक उसकी शिक्षा चांदमुनी हाई स्कूल में हुई, जहां व्हील चेयर से स्कूल जाती थी। उसके बाद 9वीं से 12वीं तक गीता ने भारती हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। अभी वह सिलीगुड़ी कालेज में बीए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया। पूजा ने बताया कि पहले पढ़ने को लेकर पूरी तरह से सीरियश नहीं थी। हलांकि 10वीं में नंबर कम आया तो थोड़ अफसोस हुआ, पर 12वीं में जब 71 प्रतिशत मिला तो उसके सपनों को हौशलों के पंख लग गये।
पढ़ने का शौक पर किताबों की कमी
पूजा ने बताया कि आर्ट और कला के क्षेत्र में बहुत लगन है बचपन से आर्ट बनाने का शौक है। उसने बताया कि सबसे बड़ी शौक उसकी कीताबें पढ़ना है। लेकिन हल्की मुस्कारन बीच उसके चेहरे पर अच्छीे किताबें नहीं होने का दर्द झलका, और डा. एपीजे अब्दुल कलाम की किताबों को पढ़ना चाहती है।
श्रवण की भूमिका निभा रही मां
दिव्यांगता के बाद जब पूजा सिंह को पढ़ने की ललक लगी तो मां ने बेटी के लिए श्रवण कुमार की भूमिका निभाने लगी। बचपन में जब कक्षा एक में थी तो स्कूूल के शिक्षकों ने बताया कि करीब पांच वर्षों तक गोंद में सुबह लेकर स्कू ल आती थी और छुट्टी होने तक बाहर बैठकर बेटी का इंतजार करती थी। उसके बाद गोंद में लेकर आती थी।
बहन की पढ़ाई के लिए भाई गया गुजरात
पूजा सिंह का छोटा भाई जो अभी नाबालिक है। पहले बहन को व्हीपल चेयर पर लेकर स्कूल ले जाता था। लेकिन घर की तंगी को देखकर वह गुजरात कमाने चला गया। 15 वर्षीया भाई अमरजीत सिंह ने घर से जाते समय कहा कि हम पैसा कमाकर भेजेंगे और आप लोग दीदी को ठीक से पढाई पूरी कराना।
डिब्रु लाइन में पूजा की चर्चा
माटीगाड़ा रेलवे क्रासिंग के पास डिब्रुलाइन चाय बगान जो चांदमुनी चाय बगान में श्रमिकों के रहने के लिए दिया गया था। चांदमुनी चाय बगान जो अब उत्तंरायन हो गया। हलांकि डिब्रुलाइन चाय बगान के आवासीय क्षेत्र जो आदिवासी बाहुल्यं क्षेत्र है पूजा की पढ़ाई की चर्चा है। स्थानीय लोगों को कहना है कि बचपन से पूजा अपने पैरों पर चल नहीं सकती है, पर पढ़ने की ललक से लोग उसे मानते है।
बीए के बाद आईएएस की तैयारी करूंगी
दिव्यांग पूजा सिंह से पूछा गया कि बीए के बाद क्या करोगी, बिना समय गवाएं एक हल्कीू सी मुस्कान के साथ जवाब था आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) करके परिवार और देश की सेवा करुंगी। जवाब तो दो शब्दों का था, पर हौशलों की उड़ान आसमान की बुलंदियों को छू रही थी। पर सपनों को पूरा करने के हौशले तो हैं पर सपनों को मंजिल मिलेगी यह तो अभी भविष्य। के गर्भ में है, पर पूजा सिंह के हौशलों की उड़ान और जज्बा देखने लायक है।
मूल रूप से बिहार का रहने वाला है पूजा का परिवार
रोजी-रोटी की तलाश में पिता गणेश सिंह करीब 30 वर्ष पहले बिहार के बैशली से सिलीगुड़ी आए थे। तब से वह राड मिस्त्री का काम करने लगे और परिवार का भरण पोषण करने लगे। हलांकि गणेश की पत्नीे मीना सिंह की मां चांदमुनी चाय बगान में काम करती थी। जिससे उन्हें डिब्रु लाईन में थोड़ी जमीन रहने के लिए बगान से मिला था। जो टीन डालकर अब जीवन चला रहे है। गणेश के दो बच्चोंल में पूजा बड़ी बेटी है जबकि करीब 15 वर्षीय अमरजीत छोटा बेटा है जो परिवार की भलाई के लिए परदेश चला गया।