अब पछताए होत क्या जब चिड़या चुग गई... : राजू बिष्ट

सिलीगुड़ी के कावाखाली में फिल्म सिटी का सपना अधूरा, अब वहां बनेगा आवसीय परिसर 

नौ वर्षो तक विकास के लिए तरसते रहे दार्जिलिंग हिल्स, तराई और डुआर्स व बगान लोग

सांसद का सवाल, न्यूनतम मजदूरी में बिलंब क्यों, बागान श्रमिकों को पट्टा अभी तक लंबित क्यों

न्यूज भारत, सिलीगुडी : दार्जिलिंग हिल्स, तराई और डुआर्स की जनता पश्चिम बंगाल में टीएमसी सरकार की राजनीति से अच्छी तरह समझ चुकी है। सरकार के चुनावी योजनाओं को सिरे से खारिज करते हुए इसका जवाब जनता ने लोकसभा चुनाव में दे चुकी है। जिसका दर्द उत्त र कन्यान की बैठक में दीदी पर दिखा। तृणमूल सरकार ने पिछले नौ वर्षो से राज्यन में शासन कर रही है। लेकिन विकास की कहानी शुन्ये के बराबर, किसान, मजदूर, चाय बगान श्रमिक व खासकर हिल्सु, तराई, डुवार्स की जनता दीदी के विकास की परिभाषा को समझ चुकी है। इसलिए यह कहावत सही है कि ‘ अब पछाए होत क्याक जब चिडि़या चुग गई खेत’ क्योंकि अब चुनाव नजदीक आ रहा है तो दीदी यहां के विकास और चाय श्रमिकों के उत्था्न की बात कर रही हैं। उक्ता बातें दार्जिलिंग के सांसद सह भाजपा के राष्ट्री य प्रवक्ती राजू बिष्टै ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कही।

उन्होंने दीदी पर सवाल उठाते हुए कहा कि ममता बनर्जी वास्ताव में चाय बागान श्रमिकों की मदद करने के बारे में गंभीर हैं।  तो वह अभी भी उत्तर बंगाल में चाय बागानों में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को लागू करने से इनकार क्यों कर रही है? यदि वह 15% भूमि चाय बागान मालिकों को दे सकता है, साथ ही सरकार चाय बागान और सिनकोना बागान श्रमिकों को उनके हिस्से पट्टे पर देने का अधिकार क्यों नहीं देना चाहती है? यदि ममता बनर्जी वास्तव में चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के बारे में चिंतित हैं, तो मैं उनसे तुरंत चाय बागान और सिनकोना बागान श्रमिकों के पट्टे के अधिकार देने का आग्रह करता हूं। हमारे क्षेत्र के लोगों के पास अपना घर बनाने की क्षमता है अगर उन्हें पट्टे का अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता है। पट्टे प्राप्त करने के बाद वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपने घर बनाने के हकदार होंगे। वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए 2006) को लागू करने में देरी और वनवासियों को पट्टे देने में देरी टीएमसी सरकार के नापाक इरादों का स्पष्ट संकेत है।  श्री बिष्ट ने कहा कि पर्यटन के विकास के लिए बेहतर एयरपोर्ट का होना जरूरी होता है। ऐसे में टीएमसी सरकार के कुशासन का एक और उदाहरण बागडोगरा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए भूमि प्रदान करने में जानबूझकर देरी करने का आरोप भी लगाया है। उन्हों ने बताया कि केंद्र सरकार पर्यटन को विकसीत करने के लिए लगभग छह वर्षों के निरंतर प्रयासों और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा 25 करोड़ रुपये के भुगतान के बाद, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने आखिरकार अपने बागडोगरा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए भूमि के आवंटन की घोषणा की। यदि कोई अन्य राज्य होता, तो राज्य सरकार ने छह साल पहले ऐसी परियोजना को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की होती। यह कहने की जरूरत नहीं है कि एयरपोर्ट के विस्ताकरीकरण में देरी ने उत्तर बंगाल के पर्यटन क्षेत्र के लिए व्यापक समस्याएं पैदा की हैं। जिससे आने वाले यात्रियों को अनावश्यक रूप से परेशानी हुई है। यदि विकास करना था तो इन सभी बाधाओं को आसानी से दूर किया जा सकता था। जीटीए को दिए जाने वाले फंड पर सवाल उठाते हुए कहा कि समझ में नहीं आया कि ममता बनर्जी ने जीटीए को 175 करोड़ रुपये का चेक देने किस लिए दी है। वहीं किस आधार पर और किस उद्देश्य के लिए यह चेक आवंटित किया गया है? इससे यह स्पष्ट होता है कि हिल्स  में जीटीए को टीएमसी नेताओं द्वारा मनमाने तरीके से चलाया जा रहा है। इसलिए अब जीटीए को तुरंत तोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दीदी ने जीटीए के लिए नकदी की घोषणा तो की, लेकिन इतने सालों से एड-हॉक पर काम कर रहे जीटीए कर्मचारियों की स्थायी नौकरी की मांग को पूरा करने में विफल रही है। वहीं दार्जिलिंग नगरपालिका के कर्मचारियों को स्थायी करने या रिक्त पदों को भरने में असफल रही हैं। वहीं सिलीगुड़ी के कावाखली में भूमि के अधिग्रहण के बाद वहाँ एक फिल्म सिटी स्थापित करने के बजाय, मुख्येमंत्री ने यहां एक आवासीय परिसर बनाने का आदेश दिया। जबकि उत्तर बंगाल में फिल्म सिटी की स्थापना ने इस क्षेत्र में निवेश और नियमित वित्तीय प्रवाह को आकर्षित किया होगा। लेकिन लगता है कि टीएमसी ने इस परियोजना को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। मुझे समझ में नहीं आता कि हमारे क्षेत्र के खिलाफ ऐसा भेदभाव क्यों किया गया है। उन्होंकने कहा कि मुझे खुशी है कि ममता बनर्जी ने जलपाईगुड़ी में एक मेडिकल कॉलेज की घोषणा की है। लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि उन्होंने मेडिकल कॉलेज के रूप में दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिला अस्पतालों को विकसीत करने की मांग को नजरअंदाज कर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पश्चिम बंगाल सरकार को इसके लिए ठोस प्रस्ताव भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के बावजूद टीएमसी सरकार ने एक प्रस्ताव क्यों नहीं भेजा?।