सपनों को पूरा करने की शक्ति है धार के शिवधाम में

मंडी के धार में भी प्राचीन काल में खेत प्रकट हुआ था भोले शंकर का शिवलिंग

आस्‍था का प्रतिक है हिमाचल के मंडी धार गांव का भोले शंकर का मंदिर, आज भी विकास की राह देख रहा  

  जगदीश शर्मा, मंडी (हिमाचल)

 देवों की भूमि हिमाचल की जहां के पर्वत श्रंखलाओं में भगवान भोले शंकर आज भी विराजमान है, ऐसी मान्‍यता है। हिमाचल की वादियों में हम क्षेत्रों में आस्‍था और विश्‍वास का केन्‍द्र देखा जा सकता है।  एक तरफ सौंदर्य की प्रतिमा तो दूसरी ओर आस्‍था का वह स्‍वरूप जो करीब-करीब हिमाचल के हर क्षेत्रों में देखने को मिलता है। यहीं कारण है कि है हिमाचल की वादियों को देवभूमि का दर्जा प्राप्‍त है। एक तरफ गगनचुंबी पहाड़, तो दूसरी ओर लहराते देवदार के पेड़ जो सौंदर्य को बेहद अनोखा बनाते हैं। वहीं दूसरी ओर हर तरफ आस्‍था का केन्‍द्र बने प्राचनी मंदिरों की श्रंखला हिमाचल के पर्यटन को चार चांद लगाते है। अगर देखा जाय तो हिमाचल की धरती अपने ऐतिहासिक और सांस्‍कृतिक विरासत के लिए पूरी दुनियां में प्रसिद्ध है। आज हम मंडी जिले के पांगण एक प्रचीन शिवधाम की चर्चा कर रहे है।

आस्था के प्रतीक धार के शिव शंकर

हिमाचल के मंडी जिले के पांगणा-मझांगण सड़क पर लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धार गांव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत से बहुत संपन्न है, यहां की अधिक आबदी नाथ संप्रदाय से संपन्‍न है। इस गांव में धार और इसके उपगांव फणोग को मिलाकर 20 परिवारों की जनसंख्या 80 के करीब है।

हल चलाने में प्रकट हुआ था शिवलिंग

 धार गांव  में शिव का एक प्राचीन मंदिर है । धार गांव के निवासी जयराम का कहना है कि उनके नाना अर्जुनु राम निहरी गांव के मकराहड गांव से यहां आकर रहने लगे । एक दिन वे खेत में  हल चला रहे थे तो हल की नोक एक शिला से टकराई।अर्जुनु राम ने मिट्टी हटाकर देखा तो वहां पर काले रंग का स्वंभू शिवलिंग प्रकट हुआ । अर्जुनु राम ने गांव वासियों  के सहयोग से इस शिवलिंग को वहीं स्थापित करके मंदिर बना दिया । आज भी यह मंदिर साधारण ही है। वहीं जयराम का कहना है कि अभी हमारी शक्ति-सामर्थ्य नहीं है,जब होगी तब जन सहयोग से प्राचीन शैली का मंदिर जरूर बनेगा  इस शिवलिंग के विषय में इतिहासकारों का मानना है कि यह शिवलिंग पांडव कालीन है। इसी मंदिर में भीमाकाली की मूर्ति  भी स्थापित है। दैनिक पूजा के साथ हर संक्रांति को विशेष पूजा का आयोजन होता है। जिसमें   शिव,विष्णु,इन्द्र,सूर्यदेव,भीमा काली को गंगाजल,दूध,दही,शहद और  शक्कर से "क्लै" लगती है।लालचंदन और कुंकुम के तिलक के साथ गुग्गुल धूप और राल धूप से पूजा होगी।

नवरात्रि व संक्रांति पर नाथ संप्रदाय करते हैं विषेश पूजा-अर्चना

नवरात्रि में नौ दिन तक जप-पाठ और भंडारा होता है। जिसमें फेगल, गलूहन, जनौल, शरचा, बेलर, थाची, महारल, फणोग,जशन सहित आस-पास के गांवों के लोग शामिल होते हैं।  संक्रांति को धार और फणोग गांव के नाथ समुदाय के लोग परंपरागत ढंग से मंदिर में श्री पूजा के बाद अपनी कोई न कोई  नई फसल के साथ साथ विषम संख्या में अखरोट के दाने, दाड़ु, गरी, मछुआरे सहित पंचमेवा, मौसमी फल-फूल शिव व अन्य देवी-देवताओं को अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिव मंदिर के नाम से दो विश्वा जमीन भी है। मंदिर के पास ही सरकार की ओर से सराय भवन भी बना है। मंदिर की व्यवस्था के लिए गांव वासियों ने एक कमेटी बनाई है।इस कमेटी में  प्रधान तोताराम सहित ग्यारह व्यक्ति पदाधिकारी और सदस्य हैं।जयराम पुजारी और भीमाकाली के गूर तथा लीलाधर पंडित का कार्य करते हैं।