पहाड़ के वनवासियों के अधिकारों का हनन कर रही तृणामूल सरकारः राजू बिष्ट
न्यूज भारत, सिलीगुड़ीः हम सभी एक ही देश के नागरिक हैं, एक ही संविधान और कानूनों से बंधे हैं। फिर भी दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों से वनवासी अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित क्यों हैं? वहीं
मैंने सदन को सूचित किया कि पहाड़ में 2000 के पहले से ही इस क्षेत्र में कोई पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। इसकी क्या वजह है जो पिछले 20 वर्षों से, दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों को बंगाल से अलग कर दिया गया। सबसे अहम बात यह है कि निर्वाचित पंचायत की अनुपस्थिति में क्षेत्र में विकास रूक गयाहै। अगर चुनाव होते तो निर्वाचित लोग अपने क्षेत्र के विकास की रूपरेखा तय करते वहीं इनके अधिकारों की रक्षा भी होती। उक्त बातें दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कही। उन्होनें बताया कि मैं सदन को सूचित करना चाहता हूं कि, यहां के लोगों को इनकी पैतृक भूमि हैं, और आज भी इन पर कब्जा नहीं है। यह लोग हमारे क्षेत्र वनवासियों की विरासत और ऐतिहासिक धारोहर के प्रतीक हैं। वहीं मैंने जनजातीय मामलों के मंत्रालय से अनुरोध किया है, जो इस मुद्दे की तत्काल जांच करने के लिए एफआरए के कार्यान्वयन अधिकारी हैं और दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के वनवासियों को उनकी पैतृक भूमि और परजा पट्टा के लिए उनके अधिकारों को मान्यता देकर न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाते हैं।
उन्होंने बताया कि संसदीय सत्र समाप्ति से पहले मैंने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए 2006) के त्वरित कार्यान्वयन की मांग रखी है। इसके साथ ही जनजातीय मामलों के मंत्रालय से अनुरोध किया है कि जो वंचित हैं, उनकी जांच करें और पता लगाएं। हमारे वन परिजा पट्टा पर अपना अधिकार वापस दिया जाय । सांसद ने संसद के नियम 377 के तहत मामले को रखते हुए, मैंने वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करते समय पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा किए गए भेदभाव के बारे में सदन को सूचित किया। एफआरए 2006 के अनुसार, लोगों द्वारा बसे सभी वन गांवों को राजस्व गांव में परिवर्तित किया जाना चाहिए। भूमि अधिकार और मालिकाना हक वनवासियों को हस्तांतरित कर दिए जाएं। उन्होंने बताया कि 2013 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य भर में वन भूमि को राजस्व गांव में बदलने की अधिसूचना जारी की। 2014 में ही जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार के पड़ोसी जिलों के लिए वन गांवों को राजस्व गांवों में बदलने के लिए एक गजट अधिसूचना जारी की गई थी। लेकिन पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार ने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के वनवासियों को समान अधिकार देने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। यहां लगभग 2.6 लाख लोग वन क्षेत्रों में रहते हैं। तृणमूल का यह कदम ऐसा क्यों है मैं समझ नहीँ पा रहा हूँ।