स्वर्गीया भोला झा स्मृति
बंगाल, असाम, उत्तर प्रदेश समेत बिहार में रखी कर्इ स्कूलों की नींव
सरकारी नौकरी के बावजूद समाज सेवा उनके डीएनए में शामिल
बिहार के बेगूसराय परिहारा गॉव में साधारण परिवार में जन्में भोला झा का बचपन से ही समाजिक कार्ये मे रूचि रही। उनके पिता स्वर्गीय तनुकलाल झा, जो गांव के मंदिर में पुजारी थे। इसी पूजा-पाठ करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। उनके चार पुत्र औऱ दो पुत्री में से भोला झा तीसरे पुत्र थे। पढ़ाई में ये बचपन से ही मेघावी 22 बर्ष के उम्र में ही ये रेलवे नॉकरी में आ गए। उनकी पहली पोस्टिंग सिलीगुड़ी में हुई। यही से उन्होंने अपने जीवन मे एक नया अध्याय शुरू किया । रेलवे की नॉकरी करते हुए समाजसेवा जुडे इसके बाद सिलीगुड़ी के प्रधान नगर इलाके में गाँधीश्रमिक प्राथमिक विद्यालय के संस्थापक सदस्य के रूप में विद्यालय की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिये। हलांकि बंगाल चिकननेक कहे जाने वाले सिलीगुड़ी में अन्य हिंदी विद्यालय तो थे, लेकिन प्रधान नगर में बच्चों के लिए कोर्इ स्कूल नहीं था। अपने काम के बाद वो अपना पुरा वक़्त सामाजिक काम मे देते थे। इसके बाद वहीं प्रधाननगर गांधी श्रमिक स्कूल के कार्य में जुट गए हलांकि स्कूल के स्थापना में बहुत बाधा आर्इ परंतु अटल निश्चय के कारण वह इस विद्यालय की स्थापना में सफल हुए। उनकी इस सफलता के बावत उनके मित्र गणेश तिवारी ने बताया कि गांधी श्रमिक की स्थापना के लिए हम लोगों ने बहुत संर्घष किये। लेकिन भोला के दृणासंकल्प ने हम सभी को साहस दिया। इस विद्यालय की स्थापना में आर एल शर्मा, छविनाथ, डा. विपिन बिहारी शर्मा समेत तमाम अन्य लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ थी। जो आज के दौर में इस क्षेत्र का सबसे पुराना हिंदी स्कूल में चल रहा है। उन्होंने बताया कि पहले खापरैल, फिर टीन अभी तो पक्का बन कर गांधी श्रमिक स्कूल बच्चों में शिक्षा का अलख जगा रहा है। श्री झा सिलीगुड़ी के बाद वह रेलवे से नौकरी छोड़कर असम में रिफाइनरी में ज्वाइन किया। तो उनकी पोस्टींग बोंगाइगांव में रिफाइनरी में हुई। वे वहाँ भी नॉकरी से आने के बाद सामाजिक कार्य में से जुड़े रहने के कारण वहां भी एक हिंदी माध्यम प्राथमिक स्कूल स्थापना किये औऱ बहुत से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। अपने मनमौजी आदत के कारण वह रिफाइनरी की नौकरी छोड़कर नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) सोनीभाद्र जिले के शक्तिनगर में भी अनेक सामाजिक कार्यो को अंजाम देने के बाद वही 2006 में वो नौकरी से सेवा निवृत्त होकर अपने पैतृक गांव बेगूसराय परिहारा आ गए। इसके बाद वह गांव के बच्चों के भविष्य को देखते हुए एक स्कूल जो दशवी तक था उस स्कूल को 12वी तक करवाने के लिए काफी परिश्रम किए और वो उसमे सफल रहे। इसके बाद एक पॉलिटेक्निक कॉलेज का निर्माण कार्य मे जुटे हुए थे लेकिन अपने नौकरी के समय से ही काफी अस्वस्थ रहने लगे इसके साथ ही हृदय रोग से ग्रसित थे । जीवन के अंतिम काल मे वो काफी बीमार रहने लगे थे औऱ अस्पताल में भर्ती रहने लगे उनकी म्रत्यु 2016 में पटना के पारस हॉस्पिटल में हुई। प्रस्तुति- बबिता झा, सिलीगुड़ी