अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा...

साधना की शख्शियत-46

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

सदियों से नारी को वस्तु और पुरुष की संपत्ति समझा जाता रहा है। पुरुष नारी का उत्‍पीड़न कर सकता है, उसके दिल के साथ खेल सकता है, उसके मनोबल को तोड़ सकता है। मानो नारी के साथ यह सब करने का अघोषित अधिकार मिला हुआ है। मगर यह भी सच है कि अनेक नारियों ने हर प्रकार की विपरीत और कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त की और इतिहास में अपना नाम अमर किया है। आज की बदली हुई तथा अपेक्षया अनुकूल परिस्थितियों में नारियां स्वयं को बदलने और पुरुष-प्रधान समाज द्वारा रचित बेड़ियों से स्वयं को आजाद करवाने हेतु कृतसंकल्प हैं। आज एक नारी के मन की व्‍यथा को सुंदर सी कविता में लिखने का प्रयास एक युवा कवित्री ने की है। शव्‍दों की बात नहीं करके उसके मन की दशा को समझने की जरूरत है। गोपाल दास नीरज की कविता संग्रह में नारी की वास्‍तविक दशा यह एक अनूठा उदाहरण है। नारियों की प्रताड़ना और उनके व्‍यथा आज भी चिंतन योग्‍य है। श्री नीरज की कविता नारियों की पर सटीक बैठती है।

अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा

अर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा,

आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,

अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा।

इस पार कभी, उस पार कभी... (नारी/गोपालदास "नीरज")

'संसार में अगर देखा जाए तो सबसे सुन्दर रूप नारियों का है, ईश्वर ने नारियों की परिकल्पना विशेष ढंग से की है, और भारत में नारियों को इस पर गर्व भी है । ईश्वर ने नारियों का स्थान हमेशा ऊँचा रखा है, लेकिन कुछ दरिन्दों के कारण उनकी जिन्दगी अभिशाप की तरह हो गई हैं। अब भी उनका हृदय अत्याचारों के डर से कांप उठता है। जिस धरती पर उन्‍होंने जन्म लिया जिसको उन्‍होंने माँ से भी बढकर माना, उसी मां को मिट्टी पर रौंद कर अब सिर्फ उनकी अवशेष ही बची है। उनकी सुन्दरता और काबिलियत चिड़ियों की तरह पिंजरे में कैद, पिड़ित सी पुकार रही है,  लेकिन उनके आवाजों पर पुरूषों ने ताला लगा रखा है। नारियां ऊपर उठना चाहती है, आगे बढ़ना चाहतीं हैं लेकिन उन्हे नीचे गिराने, पैर खीचने वालों की कमी ही नहीं है। अब उनकी मजबूरी ही है,  नारियों की चुप्पी उनकी ख़ामोशियों में बदलती जा रही है। उनके हाथ ऐसे बंध गए हैं कि बस हर रोज जलिल होती रहती हैं। कुछ अच्छे लोग सहयोग के लिए आगे बढते तो उन्हे रोक दिया जाता, जिससे बहुत कम लोग ही सहयोग कर पाते।'-

विद्या दास,नागरकटा, जलपाईगुड़ी

अब भी पिड़ित नारियां..

अब भी पिड़ित नारियां

संसार में ईश्वर ने नारियों को,

विशेष सुन्दर रूप प्रदान किया।

कुछ लोगों ने उनकी जिन्दगी अभिशाप बनाया,

जिस मिट्टी को जन्म धरती माता समझा,

उसी मिट्टी में रौंद कर अवशेष बचाया।

अब भी कल्पी हृदय अत्याचारों से

चिड़ियो की भांति नारियों को,

पिंजरे में कैद कर रखा गया।

अब भी पिड़ित नारियां कईं देशों में,

ताला लगा दिया है जुबां पर राक्षसों ने।

ऊपर उठना चाहें नारियां ,

नीचे गिराने वाले बहुत।

आगे बढना चाहे नारी पिछे, खीचने वालों की कमी नहीं।

अब उनकी मजबूरी भरी जिंदगी,

खामोशी में बन्ध कर सिमट सी गई।

बस जलिल होते हैं, हर रोज,

सहयोग के लिए है बहुत कम लोग।

-विद्या दास