यहां मंजिलों के छूने की तमन्‍ना, तो पूरे करने के सपने भी...!

साधना की शख्शियत-45

पवन शुक्‍ल, सिलीगुड़ी

"जीवन में हर पल खास है " मंजिलों को पाने की ख्वाहिश तो बचपन से ही होती हैं । लेकिन ख्वाहिश को हकीकत में बदलने के लिए हौसले की आवश्यकता होती है। इसके लिए परिश्रम जरूरी है, तब जिन्दगी खुद के मंजिलों को खास बनातीं है। जिन्दगी को मूल्यवान बनाने की अहम् कड़ी को शिक्षा माना जाता है और मेरा मन शिक्षा की ओर अग्रसर होकर काव्य रचना में बस सी गयी। कविता-पाठ करने में मेरी रूचि बचपन से ही रही कई बार मैंने विद्यालय प्रतियोगिता में भाग लिया और जीत भी हासिल की। इससे मेरी रूचि काव्य की ओर बढ़ने लगीं, लेकिन कभी ये नहीं सोचा की मैं अपने बचपन की भावनाओं को कविताओं में दर्शा पाऊंगी, लेकिन मेरे हौसलों की उड़ान मेरी मंजिलों का रास्ता बने उसे कहते हैं 'साधना की शख्शियत' । जब मेरी शिक्षा का अस्तर बढता गया, धीरे-धीरे मैं काव्य-आवृति में अधिक रूचि लेती गई और इस प्रकार मेरी कई कविताएँ कई पुस्तिका, मैगजीन, पत्रिका तथा सोसिअल मिडिया पर प्रकाशित होने लगी, इससे मेरे "हौसलों को एक नयी उड़ान " मिलने लगीं। अगर देखा जाए तो हमारे क्षेत्र में बहुजातीय लोग निवास करते हैं फिर भी यहाँ हिंदी भाषा को लेकर रूचि अधिक देखीं जाती हैं । लेकिन काफी हद तक लोग शिक्षा से पिछड़े हुए ही दिखें है। मुझे हिंदी और अंग्रेजी भाषा में रूचि है लेकिन मुझे हर भाषाओं को सिखने की इच्छा है ।

'मैं पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिलें के नागराकाटा में स्थित घाठियाँ टी ई की निवासी हूँ ।मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा संत कपितानियों बालिका उच्च विद्यालय से पूर्ण कर आगे की शिक्षा परिमल मित्र स्मृति महाविद्यालय से अंग्रेजी ऑनर्स लेकर पुरी कर रही हूँ । मुझे "लेख" लेखनी,  काव्य-आवृति करने में मेरे परिवार वाले तथा शिक्षक-शिक्षिकाओ ने काफी हद तक प्रोत्साहन किया है। मैं चाहती हूँ कि समाज के लोग मेरी कविताओं को पढकर जागरूक हो ओर आगे बढें । मेरी यही कोशिश रहेगी की समाज में एक छोटी सी बदलाव से बड़ी सफलता मिले।' -विद्या दास

यह जीवन खास है...

गुरु बिना ज्ञान कहाँ ?

शिष्य बिना संस्कार कहाँ ?

भगवान बिना श्रद्धा कहाँ ?

मनुष्य बिना संसार कहाँ ?

सब लिला माया-जाल का,

फांस लिया अपनी आवृति

कलाकार का।

माया अपरंपार गुरुवर महान ,

कर अधुरे सपने पुरी इस लोक में ।

मरने की बात न करना ,

सच्चा मार्ग तो जीवन है ।

जो मानव रूप पाकर ,

जीने का महत्व न समझें

उनका जीवन अधूरा सा

अभिशाप।

सुन्दरता, संस्कार, ज्ञान, श्रद्धा

इस युग की खास बात है ।

-विद्या दास

नागरकटा, जलपाईगुड़ी