भाई-बहन के प्रेम की अनूठी मिशाल है करम पूजा

पूरे डुवार्स समेत देश के चाय बगान व आदिवसी क्षेत्रों में पूजा की धूम

दो दिनों के पर्व में अपने पारंपरिक परिधान में नजर आते हैं लोग

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी : झारखंड के बाद अगर देश में कही आदिवासियों के पर्व करम पूजा की देखनी है तो उत्‍तर बंगाल के डुवार्स में देखा जाता है। खासकर जो उत्‍तर बंगाल के चाय बगानों में आयोजित किया जाता है।  भादो के महीने में एकादशी को मनाया को मनाया जाना वाला करम पूजा आदिवासियों के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण है। खासकर यह पर्व भाई-बहन के प्‍यार की अनूठी मिशाल है। एक तरफ जहां भाई के लिए बहन उनके मंगल की कामना करती है। वहीं दूसरी ओर आज करम पूजा की धूम पूरे डुवार्स के चाय बगानों में मनाया जा रहा है। जिसमें हल्‍दीबाड़ी, नागराकाट समेत उत्‍तर बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, अलिपुरद्वार के करीब 275 से अधिक चाय बागानों में मनाया गया।  इस क्रम में  अलिपुरद्वार जिले के दमनपुर चाय बगान में आयोजित किया गया। जिसमें पूजा के साथ लोग खुशी से झूमते और अपने पारंपरिक परिधान में सजकर करम पूजा की इसके बाद अपने वाद्ध् यंत्रों पर पारंपरिक नृत्‍य किया। अलिपुर दमनपुर चाय बगान में आयोजित कार्यक्रम में मुख्‍यरूप से शिवशंकर मुंडा, मजिंदर बराइक, पूर्णिमा तिग्‍गा व जय राम भगत प्रमख थे।

''करम का त्योहार आदिवासियों का मुख्या पर्व है। यह त्योहार झारखण्ड ,छत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल,उड़ीसा और असम के आदिवासियों द्वारा धूम -धाम से मनाया जाता है। करम भादो के महीने में एकादशी को मनाया जाता है। इस पर्व में जावा आकर्षण का केंद्र होता है। जावा सात प्रकार के आनाज जौ, गेहूँ, मकई, धान, उरद, चना,और कुर्थी से उगाया जाता है।करम पर्व की शुरुआत युवतियों द्वारा जावा उठाकर की जाती है ।करम डाली को लाने के पाँच या सात दिन पहले युवतियाँ नहा धोकर नाचते गाते हुए नदी किनारे बालू लेने जाती हैं और उसी बालू में अनाजों को बो कर किसी साफ़ जगह में रख देतीं है।रोज दिन धुप धुवन द्वारा पूजा अर्चना करके हल्दी पानी से अनाजों को सिंचतीं हैं और गाना गाकर जावा को उगतीं हैं। करम पर्व के दिन घर आँगन और अखड़ा को गोबर से लिप कर शुद्ध और पवित्र किया जाता है।गाँव के कुछ युवक और बुजुर्ग मिलजुल कर नये वस्त्र धारण कर मांदर बजाते, नाचते-गाते करम डाली काटने के लिए जंगल चले जाते हैं। वहां पहुंचकर करम पेड़ का पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना करके पेड़ चढ़कर तीन डालियां काटते हैं उन्हें यह भी ध्यान रखना होता है कि करम डाली जमीन पर गिरे नहीं ।उसके बाद करम डाली नाचते गाते हुए लाई जाती है और  गाँव के अखड़ा में गाड़ दी जाती है ।शाम को गाँव के पाहान द्वारा करम राजा की पूजा अर्चना करायी जाती है।युवतियाँ पूजा के लिए करम राजा,(करम डाली को करम राजा कहकर संबोधित किया जाता) ,के चारो ओर बैठ कर पूजा आराधना करतीं हैं।जावा,खीरा ,चावल सिंदूर,चिउड़ा,धुप ,फल फूल-फूल दूध पानी आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है।पाहान द्वारा करम के विषय में विभिन्न तरह की कहानियां बताई जाती है।कर्मा और धर्मा दो भाइयों की कहानी भी प्रचलित है।पूजा आराधना के बाद युवक- युवतियाँ ,बच्चे -बुजुर्ग सभी मिलकर मांदर नगाड़ो के धुन में नाचते गाते है। अगले दिन सुबह पूजा अर्चना करते हुए करम डाली का किसी नदी या तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है।यह पर्व भाई बहनों का पवित्र त्योहार है।बहने वर्त रखतीं हैं और भाइयों के लिए दीर्घ आयु और सुख समृद्धि के लिए मंगल कामना करतीं हैं।अच्छी खेती और सुख समृद्धि के लिए भी मंगल कामना की जाती है।यह त्योहार कर्म करने और प्रकृति के साथ सहभागिता का सन्देश लेकर आता है।''

इमलेन बोदरा

शिक्षि‍का