संकल्प के सपनों की सही उड़ान है...

साधना की शख्शियत-36

किसी भी जीवन में गांव की गलियां हो, शहरों का चकाचौध पर अगर सपनों का लक्ष्यी एक है। संकल्पौ के सपनों को पूरा करना है, तो जीवन की राह में आने वाली हर बाधा उसके सपनों को पूरा करने से रोक नहीं सकती। इंसान जब सपनों की दुनियां में डूबता है, तो लक्ष्यर एक हो, हलांकि कुछ पल के लिए सपनें अधूरे दिखते जरूर हैं, लेकिन वास्तव में वह अधूरापन उसे सपनों की मंजिल की तरफ लेकर जाता है। लक्ष्यै की पूर्ती के लिए जिंदगी इम्तिकहान भी लेती, लक्ष्यं की प्राप्ति का संकल्प  अगर सच्चे मन से हो पूरा अवश्यक होता है। साहित्य के क्षेत्र में लक्ष्य  के सपनों को पूरा करने के लिए मन की भावना को काव्ये रचना का रूप देने के लिए साधना की जरूरत होती है। जब काव्य रचना किसी भी प्रकाशान के मूल से जुड़ जाता है तो वहीं उसकी ‘ साधना की शख्शियत’ की पहचान बनती है। आज में मध्य प्रदेश के भोपाल से श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया जो पेशे से शिक्षिका है उनके मन की भावना को मूर्त रूप देने की कोशिश किया जा रहा है।

“मुझे बाल्यावस्था से ही पढ़ने और लिखने का शौक रहा है । मैं पीएचडी भी करना चाहती थी लेकिन वैवाहिक बंधान के कारण ये सपना अधूरा रह गया। सपनें पूरे नहीं होने के बावजूद आज भी अपना लेखन कार्य जारी रखना रखा। लेकिन ससुराल में अनुकूल परिस्थितियां नहीं थी, मेरे बच्चे भी छोटे-छोटे थे, और स्कूल के साथ दोहरी जिम्मेदारी के साथ मेरे सपने अधूरे रह गए। जब मेरे बच्चे बड़े हो गए तो मैंने लिखना आरंभ किया आज मेरी बहुत सी कविता की रचना की। मैं कविता, लेख, लघुकथा काव्य, गायन में "मेरी आवाज मेरी पहचान" आदि में प्रशस्ति पत्र मिल चुके हैं। यह कह सकती हुं के पंखों से उड़ान नहीं होती है, उड़ान हौसलों से होती है। हौसले यदि मजबूत है तो निश्चित ही मंजिल मिलती है।”

"पांच दीपक"

अहोभाग्य हमारा, पाँच अगस्त दो हजार बीस।

पाँच सौ वर्ष पश्चात, अयोध्या में मर्यादा।

पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर, निर्माण के रूप में।

पावन पर्व आया है, आओ हम सब ।

अपने अपने घरों में, पाँच-पाँच दीपक जलाकर।

दीपावली उत्सव मनाएं।।

 

अहोभाग्य हमारा, यह शुभ दिन आया।

अपने संग अनेकों खुशियां लाया।

सबके हृदय में उमंग, उल्लास,हर्ष और गर्व।

संग-संग लाया, एक नया ऐतिहासिक।

दिन आया, राम जन्मभूमि, पर राम मंदिर निर्माण का ।

स्वर्णिम युग आया ।।

अहोभाग्य हमारा, सकल भारत के जन-जन में।

राम नाम समाया, सबके रोम रोम में।

राम-राम छाया, आज देवभूमि भारत के।

मन में राम-तन में राम, जन-जन के रक्त की एक-एक।

बूंद में बसे राम, राम नाम से रोम-रोम।

पुलकित हुआ ।।

अहोभाग्य हमारा, भारत की पावन धरा पर।

राम का त्याग तपस्या का, जीवन आदर्श उपस्थित है।

भजो राम को,तजो विकारों को, अंतस में बसा लो राम को।

राम नाम निरंतर सुमिरो, सब दुख संताप हरे।

नित-नित राम नाम स्मरण करो ।।

अहोभाग्य हमारा, भवसागर उद्धार करेंगे।

ज्यो शबरी और अहिल्या का, उद्धार किया,राम नाम सत्य है।

राम ही शांति सुख धाम है, राम-सिया संग संपूर्ण जगत।

राममय हुआ चँहुओर, उमंग उल्लास के पुष्प खिले है।

भारत देव धरा के अयोध्या में, जो राम नाम विस्मृत कर चुके थे।

उनकी जिह्वा पर भी राम नाम, स्मृत हो मुख से मोती बन।

वाणी से राम-राम ही, निकल रहा अहोभाग्य हमारा।।

श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश)