साधना की शख्शियत-34
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ीः सपनों की मंजिल का पाने की तमन्नाभ, काव्यों के प्रति रूचि अगर निष्ठा सच्ची हो, तो प्रकाशित होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। रचनाओं की अपनी विरासत होती है, रचना लिखना और रचनाओं के संग्रह से ही उसकी लगन और सच्ची निष्ठा ही उस रचनाकार के " साधना की शक्शियत" होती है। उम्र का पड़ाव जो भी हो पर ऊहापोह की जिंदगी और पारिवारिक जिम्मे"दारियों का निर्वहन के साथ साहित्य से जुड़े रहना ही एक साधना । इन तमाम मुश्किलों के बीच अगर कोई अपनी रचना को बिना नाम मिले निरंतर लिखता रहता है। तो सफलता के सपनें खुद-बखुद समय उस रचनाकार के सपनों को पूरा करते हैं।
’बिहार के एक छोटे से गांव बरहशेर में बचपन से पठन-पाठन में रूचि रही। पढ़ार्इ के केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) बच्चों की शिक्षा देने के साथ उनको स्काउट गार्इड में प्रशिक्षण देते हुए जीवन के साठ वर्षे तक केवीएस की सेवा की। हलांकि इस दौर में देश के विभिन्न केवीएस में हमने अपना योगदान दिया। तमाम व्यस्तता के बीच भी हमने काव्य व साहित्य से जुड़ाव रहा। हलांकि अपनी रचना को संजोकर रखना ही शिक्षा की मूल पूंजी रही। मैं अपनी इस विधा को अपने रोम रोम में बसाया, और अपनी रचनाओं को डायरी के पन्नों पर मूर्त रूप दे रही। जीवन में निरंतर प्रयास करना ही मेरा लक्ष्य है। काव्य की रचनाओं का शौक है, पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति के साथ अपनी मन के खुशी एवं समाज की बुरार्इयों पर प्रहार करने के लिए करता हूं। आज पहली बार न्यूबज भारत के माध्य म से अपके समक्ष हूं, उम्मीीद है आपको ‘जगाना जरूरी है....’’ ।
जागना जरूरी है जगाने के लिए,
गरीबी भुखमरी और बेरोजगारी जैसे रोग को
बिहार से भगाने के लिए।
सूखे होठों पर मुस्कान सजाने के लिए ।
जागना जरूरी है, जगाने के लिए ।
उजड़े घर , टूटे सपने और अंधेरे पथ को
जगमगाने के लिए उन्नति के गीत
गुनगुनाने के लिए।
जागना जरूरी है , जगाने के लिए।