यह कैसा लाकडाउन....?

''कोरोना संकट से निपटने को बने ठोस नियम, राजनैतिक पराकाष्‍ठा से उपर उठे अधिकारी.?। कोरोना से बिगड़ते हालात को देखते सभी को अपनी संवेदना से जोड़ना होगा.? इसमें चाहे प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस बल के जवान, व्‍यापारी या हर आम और खास। जरूरत सभी को एक साथ मिलकर इस आपदा से निपटने की है। वहीं इस बेकाबू होते कोरोना संक्रमण के संकट राजनितिक दलों को भी थोडा राजैतकि पराकाष्‍ठा से उपर उठकर काम करने की जरूरत है।''

लाकडाउन में पुलिस के हाथ बंधे..?

अगर पहले लाकडाउन की बात करें तो उसी समय से ही कानून की व्‍यवस्‍था कायम करने वाले अधिकारियों के हाथ बंधे थे..? क्‍योंकि लाकाउन को पालन कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति नहीं नहीं थी, परोक्ष रुप से। जिसके कारण लोगों में कोरोना संक्रमण को लेकर बहुत गंभीर नहीं हुए। हलांकि दिखाने के लिए पुलिस बल तो तैनात था, पर राजनैतिक पराकाष्‍ठा ने उनके हाथ बांध दिया गया था। यह बात सिर्फ बंगाल की ही नहीं अपितु भारत के कमोबेश हर राज्‍यों में दिखा..? सबसे खराब हालात तो देश के महानगरों की रही। जिसके कारण मजदूरों को शहरों से गांवों की ओर रुख किया। अगर बड़े महानगर थोड़ा राजनैतिक पराकाष्‍ठा से उपर उठकर मजदूरों पलायन रोकने की कोशिश करते तो शायद इतने भयावह हालात आज देश नहीं होता..? क्‍योंकि सभी राज्‍य अपने-अपने वोट बैंक की सहुलियत के हिसाब से पुलिस बल का प्रयोग किया।

कोरोना के आगे सब बेबस..?

हलांकि शुरू से ही डाक्‍टरों की टीम ने देश में भयावह पलायन को देखते हुए कहा था कि आगे हालात और बदतर होंगे..? हुआ भी वहीं। आज जब कोरोना सामुदायिक संक्रमण की राह पर चल चुका तो, चाहे केन्‍द्र की सरकार हो या राज्‍यों की सरकारें सबकी व्‍यवस्‍था, सब चरमरा गई..? इसके आगे सब बेबस नजर आ रहे हैं। अब इस बेबसी के लिए कुछ हद तक हम सब भी जिम्‍मेदार है। कोराना का संक्रमण अब शायद ही देश का कोई ऐसा कार्यालय/आफिस नहीं बचा है जहां काेरोना ने दस्‍तक न दी हो। बैंक, सचिवालय, केन्‍द्रीय मंत्रालय के कार्यालय, राज्‍यपाल के भवन तक पहुंच गया। एक बात जरूर है पहले लाक डाउन को अगर ठीक से लागू होता तो शायद इस तरह के हालात नहीं होते..? होता पर इतना भयवह हालात नहीं होता।

आपदा में अवसर खुद तलाशना होगा..?

चीन से तनातनी के बाद प्रधानमंत्री के संबोधन में 'आपदा को अवसर में बदलने की ताकत भारत में है' को आज हम खुद सच कर सकते हैं..? इसके लिए हमारे पास आज भी अवसर है..? अगर सरकार के बनाए नियमों का पालन सही तरिके से करें, तो अनदेशी आपदा टल सकती है और इसे अवसर में बदल सकते हैं..?

एशोसिएशन को निष्‍पक्ष कड़े कदम उठाने की जरूरत

आवश्‍यक वस्‍तु को अगर छोड़ दे तो कमोबेश अन्‍य एशोसिएशन लाकडाउन को ठीक तरिके से निभा रहा है। लेकिन आवश्‍यक वस्‍तु के गल्‍ला मंडियों में जिस तरह से काम किया जा रहा है वह खुद के लिए ही घातक साबित हो रहा है। अगर हम सिलीगुड़ी के खालपाड़ा गल्‍ला मंडी की बात करें तो यह भी सब ठीक नहीं है। बाजार में ना कोई नियम ना ही कोई तरिका..? बस बाजार को खोलकर सामानों की आपूर्ति ही करना एक मात्र उद्देश्‍य बना चुका है। हलांक‍ि एशोसिएशन ने आवश्‍यक वस्‍तु के अलावा सभी दुकानों को बंद करने को कहा था, लेकिन व्‍यापारियों ने कुछ कमाने के चक्‍कर में एशोसिएशन का विरोध भी किया। जिसके कारण अब खालपाड़ा पर सामुदायिक संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है। हलांकि पहले लाकडाउन में कुछ हद तक ठीक था, लेकिन अनलाक के बाद सब कुछ बदल गया। वहीं संक्रमण बढ़ने के बाद प्रशासन ने सात दिनों के लाकडाउन की घोषणा की परंतु फिर वहीं कहानी..? जिसका विरोध भी स्‍थानिय शोशल मिडिया पर हो रहा है।

स्‍वयं जागरूकता की जरूरत..?

 गुरुवार की बंदी की देखने से साफ लगता है, क‍ि संक्रमण रोकने की जिम्‍मेदारी सिर्फ पुलिस और प्रशासन की है..? हमे अपनी जिम्‍मेदारी निभाने की जरूरत नहीं है। शहर के सालुगाढ़ा, भक्ति नगर, प्रधाननगर, सेवक रोड, झंकार मोड़, दार्जिलिंग मोड़ समेत सभी क्षेत्रों से लेकर खालपाड़ा तक की बात करें आवश्‍यक सेवा के नाम पर सभी जगहों पर दुकाने खुली थी..? क्‍या हम जागरूक नहीं हो सकते..? जब प्रशासन की लाठी चलेगी तभी बंद करेंग..? यहां खुद को जागरूक होने की जरूरत है..? जब दुकानें खुलेगी तो ग्राहक आएंगे ही..? यह कड़वा सत्‍य है। सबसे अहम बात यह है क‍ि एक तरफ जहां पुलसि आफिसर रोजश क्षेत्री के नेतृत्‍व में विशाल सिनेमा के पास सघन जाांच अभियान चलाया जा रहा था, वहीं सेवक रोड पर मारवाड़ी भवन के सामने नवनिर्मित भवन की बात करें तो लेबरों से काम घडल्‍ले से चल रहा था..? इसे हम क्‍या कह सकतें हैं। जबकि भक्ति नगर थाना के नाक के नीचे चाय की दुकान समेत कई दुकाने खुली रही..? इस पर लाकडाउन नहीं लागू होता..? यह सारे सवाल की जिम्‍मेदारी सिर्फ प्रशासन और पुलिस की नहीं है..? हमें अपनी जिम्‍मेदारी को भी समझने और जगरूक बनने की है। तभी कोरोना हारेगा और भारत जीतेगा।

विदेशों की तुलाना में हम बेहतर ..?

वैश्‍वीक बिमारी कोरोना की तुलना विश्‍व से करें तो संक्रमण की दायरा तो बढ़ा पर बेहतर खान-पान के कारण मौत का दायरा कम है। भारतीय संस्‍कृति के कारण हम विदेशों की तरह खानपान में फास्‍ट फूड पर निर्भर नहीं है। जिसके कारण संक्रमण से ठीक होने वालों की संख्‍या अधिक है जबकि मौत का आंकड़ा कम है। वहीं अब धीरे-धीरे अपने सामुदायिक संक्रमण की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में हम खुद को देखने और संभलने की जरूरत है..? इसलिए सरकार के नियमों का पालन कर प्रशासन का सहयोग करें। हलांकि यह आंकड़े ताजा नहीं है। इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हालात क्‍या है और हमें करना क्‍या है।

पवन शुक्‍ल

सिलीगुड़ी