बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध परम्परा एवं गौतम बुद्ध विषयक व्याख्यान शृंखला का आयोजन

• गौतम बुद्ध के जीवन, शिक्षा और बौद्ध परम्परा पर डॉ. देवेन्द्र पाल का व्याख्यान

• प्रतिभागियों की सक्रिय सहभागिता और ऑनलाइन माध्यम से देशभर से जुड़ाव
एनई न्यूज भारत,गोरखपुर: महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ, दी. द. उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग), उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पाँच दिवसीय व्याख्यान शृंखला के दूसरे दिन 'बौद्ध परम्परा एवं गौतम बुद्ध' विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. देवेन्द्र पाल रहे। उन्होंने गौतम बुद्ध के जीवन, शिक्षाओं और उनके सामाजिक सरोकारों पर विस्तार से प्रकाश डाला। डॉ. पाल ने बताया कि बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया। वटवृक्ष उनके ध्यान से बोधिवृक्ष बन गया। उन्होंने चार आर्य सत्य, प्रतीत्यसमुत्पाद तथा अनात्मवाद जैसे सिद्धांत प्रतिपादित किए।
डॉ. पाल ने कहा कि बुद्ध की संघ प्रणाली गणतांत्रिक थी और उनके विहार शिक्षा के केंद्र थे। उनकी शिक्षाओं का संकलन त्रिपिटक—सुत्त पिटक, विनय पिटक व अभिधम्म पिटक में हुआ। गीता और धम्मपद की तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि गीता में उपदेश एक संवाद तक सीमित है, जबकि धम्मपद विविध कथाओं से समृद्ध और दीर्घकालिक शिक्षाओं से युक्त है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गोरक्षनाथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र ने की। विषय प्रवर्तन सहायक निदेशक डॉ. सोनल सिंह ने किया, जबकि संचालन डॉ. सुनील कुमार और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. हर्षवर्धन सिंह द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रीति भारती ने भगवान बुद्ध पर स्वरचित कविता का पाठ कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
इस कार्यक्रम में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिभागियों ने ऑनलाइन माध्यम से सहभागिता की। अंत में प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर डॉ. पाल ने सविस्तार दिए। कार्यक्रम में शोधार्थी एवं सहायक ग्रंथालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, चिन्मयानन्द मल्ल सहित अनेक विद्वान उपस्थित रहे।