परिचय: मैं आर्चना शर्मा,प्रधानाचार्या हिन्दी बालिका विद्यापीठ स्कूल, सिलीगुड़ी की, आज एक ऐसी पीड़ा को स्वर देना चाहती हूँ, जो केवल एक देश की नहीं, बल्कि समस्त मानवता की त्रासदी है जब सीमा के उस पार से अंधेरे ने सर उठाया,भारत माँ के वीरों ने लहू में जुनून जलाया। यह कोई साधारण युद्ध न था, यह न्याय की पुकार थी— एक चिंगारी जो वर्षों से सुलग रही थी, अब शोला बनकर दुश्मन की अंधेर नगरी में भड़क उठी। यह कविता उस साहस, उस बलिदान, और उस न्याय की गाथा है, जो भारत के रणबाँकों ने राचा।
भड़क उठी चिंगारी
सोए हुए सिंह को देखो,
तुमने ही तो जगाया है।
पाकिस्तान की धरती पर,
अब युद्ध का तांडव छाया है।
आतंक का खेल घिनौना
तुम पर अब भारी होगा,
अब तू सुन गद्दार
पानी को भी तरसेगा।
दबी हुई चिंगारी को
तूने ही भड़काया है।
हाँ तनाव बढ़ा है भारत में
युद्ध की आहट सुनाई देती है,
दहशत में है भारतवाशी,
खात्मा आतंक का चाहती है।
दबा देशप्रेम आज सभी का
देख उभर कर आया है।
है अहसास परिणाम युद्ध का
बढ़ा विनाशक होगा,
निर्दोष लोग जायेंगे मारे,
सब बड़ा भयानक होगा।
सोई हुई ज्वलामुखी को
देखो तुमने ही जगाया है।
ले ध्वजा शांति की,
हम थे सीधे राह चलें,
काफ़ी समझाया कि
दोनों देश की दूरियां मिटे।
शांति से रहना भला
तुमको कहाँ गवारा है।
जात पूछ कर तुमने मारा
हम अपनी जात दिखा देंगें
कितनी ताकत है हममें
ये तुमको अब दिखला देंगें।
देश के वीर जवानों को,
अब तुमन ही ललकारा।