• सेगुरुद्वारे में सुखमणि साहिब का पाठ प्रारंभ हुआ,40 दिन तक अंतिम पाठ
• सभी मनोवैज्ञानिक लोग ले सकते हैं पाठ में भाग जो 3:00 अपराह्न दोपहर से शाम 5:00 बजे 30 मई तक
एनई न्यूज भारत सिलीगुड़ी: सिख धर्म के पांचवें गुरु, गुरु अर्जन देव की मृत्यु आज भी इतिहास के खंडित में एक अमर प्रेरणा के रूप में दर्ज है। उनके जीवन, शिक्षा और बलिदान ने न केवल सिख पंथ को नई दिशा दी, बल्कि संपूर्ण मानवता को सत्य और सेवा का संदेश दिया।

जीवन परिचय: गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल, पंजाब में हुआ। वे सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव की परंपरा में पाँचवें गुरु बने। उनके नेतृत्व में सिख धर्म ने अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रगति की।

उपलब्धियाँ: अर्जन देव ने आदि ग्रंथ का संकलन किया, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में सिखों का पवित्र ग्रंथ बना। साथ ही, उन्होंने अमृतसर में हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण किया, जो आज सिखों का सबसे पवित्र तीर्थस्थल है।
फ़ातिहा की कहानी: गुरु अर्जन देव की प्रशंसा से चिंतित मुगल सम्राट जहां गीर ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था। उन पर विद्रोह में सहयोग का आरोप लगाया गया। सन् 1606 में उन्हें लाहौर लाया गया, जहाँ उन्होंने यातना झेली बनाई - लोहे के तारों पर तपते लोहे के टुकड़े गिराए गए, गर्म रेतियाँ बिखेरी गईं - पर उन्होंने अपना धैर्य और शांति नहीं खोई। अंत में उन्हें रावी नदी में स्नान कराया गया, जहां उन्होंने त्याग दिया।
ख़ारिज का असर: उनकी ख़ातिर ने सिखों को एक नई पहचान दी। यही वह क्षण था जिसने लोगों को आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित किया। उनके उत्तराधिकारी, गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने संत-सिपाही की परंपरा की शुरुआत की प्रेरणा दी।
संदेश: गुरु अर्जन देव की मृत्यु का एक संदेश है, सत्य, प्रेम और मानवता की राह पर चलने वाले की मृत्यु भी अमर बनी है।
यह समर्पण नामांकन योग्य है, और आने वाले स्मारक के लिए प्रेरणा का स्तंभ भी।
सिलीगुड़ी गुरुद्वारे में पाठ का हुआ आयोजन
सिखों के महान गुरु, गुरु अर्जन देव की शहीदी दिवस पर 21 अप्रैल को गुरुद्वारे में सुखमणि साहिब का पाठ आरंभ हुआ। यह पवित्र पाठ 30 मई से प्रतिदिन जारी रहेगा। इस अवसर पर सभी माता-पिताओं ने विशेष भक्ति भाव से पाठ में भाग लिया और गुरु जी की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए श्रद्धा भाव से अपनी आस्था प्रकट की। यह कार्यक्रम सिख समुदाय के लिए आध्यात्मिक बल और एकता का प्रतीक बना हुआ है।