कभी इटली के बाद दूसरे नंबर पर था पूर्वांचल का शहर गोरखपुर
पांच दशकों से उत्तर प्रदेश माफियाराज पर खादी की रही छत्र छाया
अपराध के विकास का अंत, दफन हो गए खाकी और खादी का गठजोड़़
रेलवे के ठेके से माफियाराज का जन्म, बिहार के माफिया भी कूदा थे मैदान में
'' 70 के दशक में पूर्वोत्तर रेलवे की ठेकेदारी ने पूर्वांचल के शहर गोरखपुर को एक नई पहचान दी। इटली के बाद अपराध की दुनियां में गोरखपुर को विश्व का दूसरा आपराधिक शहर बीबीसी ने घोषित किया था। रेलवे का ठेका और जातिवाद के वर्चस्व जिस दो माफिया को जन्म दिया और उस समय जो खाकी-खादी का जो गठजोड़ हुआ, उसकी परंपरा आज तक कायम है। हालांकि 1980 से 1990 के दशक में पूर्वांचल का अपराध तो कुछ कम हुआ। परंतु इसको रोक पान किसी भी राजनैतिक पार्टी के लिए चुनौति था। वोट की राजनीति, चुनाव में पैसों की जरूरत ने अपराध जगत के काले व्यापार को पनपाया। जिसके कारण पूर्वांचाल के अपराधियों की मांग पड़ोसी राज्य बिहार और अन्य राज्यों में होने लगी...? जिसके कारण माफियाराज का नेटवर्क उत्तर प्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्यों तक फैल गया। इसी खाकी और खादी के गठजोड़ ने माफियाराज के काले कारोबार जन्म दिया। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या है, हलांकि यूपी पुलिसे ने अपराध के विकास का अंत 'कानपुर वाले विकास दूबे को कानपुर की ही धरती पर अंत कर दिया। लेकिन खाकी और खादी का गठजोड़ फिर एक बार बौना हो गया...?''।
पूर्वांचल की धरती जयराम की दुनियां की जनक कही जाती है। कभी साथ-साथ एक दूसरे पर मरने वाले ब्राह्रमण व राजपूतो की दोस्ती इस कदर दुश्मनी में बदली की पूर्वांचल ही नहीं पूरी दुनियां को अपराध जगत के नक्शे पर गोरखपुर को लाकर खड़ा कर दिया। 1970 से 1980 के दशक में भारत के उत्तर प्रदेश की धरती पूर्वांचल का शहर गोरखपुर जयराम की दुनियां का शहंशाह बन गया। हलांकि जातिवाद और वर्चस्व की लड़ाई की शुरूआत का केन्द्र गोरखपुर के दक्षिणांचल के चिल्लुपार विधानसभा से शुरू हुई।जिसमें कईयों ब्राह्मण और राजपूतों की मलिाओं की मांग सूनी हो गई और कईयों के लाल काल के गाल में समा गए। 1980 दशक के बाद 1985 में पूर्वांचल के विकास का सपना देखने वाले स्व. वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री का पद सभांलते ही जयराम की दुनियां पर नकेल कसी। इसके बाद गोरखपुर के विकास का खाका बना कर विकास की शुरूआत की लेकिन वे भी रहस्यमय हालत में काल के गाल में समा गए। हलांकि उस दौरा में जयराम की दुनियां का वर्चस्व कम तो हुआ, पर खत्म नहीं हुआ। इस सारे फसाद की जड़ कहें तो पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है। जहां से स्क्रैप समेत अन्य टेंडर था। जयराम की दुनियां के बादशाह कहे जाने वाले पंडि़त हरीशंकर तिवारी और विरेन्द्र शाही की धमक रेलवे के ठेके पर कायम थी। दोनों की वर्चस्व की लडाई में कौड़राम विधान सभा क्षेत्र के युवा होनहार लखनऊ विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके युवा विधायक रविंद्र सिंह की हत्या लखनऊ जाने के क्रम में गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर सुबह ट्रेन पकड़ने के क्रम हो जाती है। इसके बाद बुलेट का प्रभाव बैलेट पर दिखाते हुए जयराम की दुनियां के दोनों बादशाह चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश की विधान सभा पुहंच गए। ये सच है कि पहली बार चुनाव जीतने के बाद दोनों ने अपने-अपने विधान सभा क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया। सड़कों का जाल विछाया, गरीबों की मदद भी की। जिससे उनका विधान सभा में जाना लगभग तय सा हो गया। इधर रेलवे के ठेके को लेकर बिहार के बाहुबली अपनी किस्मत आजमा रहे थे, लेकिन पूर्वाचंल के दो धुरंधरों के बीच इनकी एक नहीं चली। उधर हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की दुश्मनी में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी का उदय हुआ । आजमगढ़ बाजार में पिता की हत्या होने के बाद बृजेश अपराधी बना गया। 1990 से 2000 के बीच इन माफियों को मात देने के लिए गोरखपुर की धरती ने और माफियाओं को जयराम की दुनियां में उतारा। कहते हैं कि 90 के दशक बाद अपराध राजनीतिक व्यापार में तब्दील हो चुका, उस समय तक अत्याधुनिक हथियार ऐके 56 जैसी बंदूक पुलिस से पहले अपराधियों के पास आ चुकी थी। उभरते युवा माफियाओं के सपने बड़े थे, हौसला आसमान छूता, बिहार के खेमे ने इस दो युवा माफियांओं को अपने बस मे कर रेलवे की ठेकेदारी में अपनी पैठ बनाने की कोशिश शरु की। इस जयराम की दुनियां के धुरंधरों में श्रीप्रकाश शुक्ल, राजन तिवारी, सुधीर सिंह जैसे लोग शामिल थे। पूर्वांचल में इसके बाद ऐके 56 जैसे घातक हथियारों से ताबड़तोड़ हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ। पहले निगम पाषर्द की मोहद्दीपुर में दिन दहाड़े हत्या, रेलवे स्टेशन के सामने हत्या, लखनउ के होटल में भानु मिश्रा पर हमला, हलांकि भानू मिश्रा बच गए, लेकिप भानू मिश्रा को बचने में विवेक शुक्ला को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। मालूम हो कि सभी हत्याएं फिल्मी अंदाज में हुई। इसमें भी खाकी और खादी का गठजोड़ था। जब 1997 की शुरुआत में श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ शहर में वीरेंद्र शाही को दिन दहाड़े लखनऊ में गोलियों से भून दिया। इस हत्या के बाद पुराने माफियाओं की भी चोक ले गई। समय के साथ हालात बदले और बादशाहत बढ़ी तो श्रीप्रकाश शुक्ला ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, व सभी सरकारों में मंत्री रहे हरिशंकर तिवारी की हत्या की सुपारी ले ली। इसके बाद राजन तिवारी ने दिल्ली में आत्मसर्मण की प्रक्रिया मे अपनी गिरफ्तारी देकर चैन से हैं। लेकिन जयराम की दुनियां के विकास दूबे की तरह अपनी पैठ बनाने वाले श्रीप्रकाश शुक्ल को खाकी और खादी पर भरोसा होने के कारण अपने लोगों की मुखबीरी का शिकार हुआ। यूपी में पहली बार एसटीएफ बनाई गई। जिसका पहला शिकार श्रीप्रकाश शुक्ला को किया। श्रीप्रकाश का इनकांउंटर उत्तर प्रदेश के नोयेडा में किया गया। हलांकि गोरखपुर की धरती पर और लोग भी जुड़ने लगे थे। पूर्व विधायक अंबिका सिंह, पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी, पूर्व सांसद ओम प्रकाश पासवान, पूर्व सांसद बालेश्वर यादव आदि का उनके नुमाइंदे बन लोगों के रहनुमा बन चुके थे। इससे साफ जाहिर होता है, कि खाकी-खादी का गठजोड़ ही एक मात्र कारण जो जयराम की दुनियां के विकास में काफी सहायक है। 1990 के दशक से जयराम की दुनियां में कदम रखने वाले ' विकास दूबे कानपुर वाले' 30 वर्षो तक कानपुर के आसपास जयराम की दुनियां की बादशात कायम रखी। लेकिन 3 जुलाई को कानपुर में बिल्हौर सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की अपने गांव बिकरू में नक्सली अंदाज में गोलियां बरसाकर हत्या करने वाले दुर्दांत अपराधी विकास दुबे को घटना के आठवें दिन ही पुलिस और एसटीएफ की टीम ने मार गिराया। पांच लाख रुपये इनामी हिस्ट्रीशीटर को गुरुवार सुबह मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर परिसर से गिरफ्तार किया गया था। वहां से कोर्ट में पेशी के लिए लाते वक्त कानपुर शहर से पहले ही सचेंडी थाना क्षेत्र में बेसहारा जानवरों को बचाने के चक्कर में एसटीएफ की कार पलटी तो कुछ पल के लिए पुलिसकर्मी हल्की बेहोशी की हालत में आ गए। दुर्घटना का फायदा उठाकर विकास इंस्पेक्टर नवाबगंज की पिस्टल छीनकर भागा। पीछे से आई दूसरी टीम ने उसे दौड़ाया। इस दौरान जवाबी मुठभेड़ में एसटीएफ और पुलिस टीम ने उसे ढेर कर दिया। मुठभेड़ में एसटीएफ के दो जवान भी घायल हैं। हलांकि यह तो पुलिस की बात है। परंतु वास्तविकता कुछ अलग ही लगती है। हलांकि इस दुर्दांत का मारा जाना आवश्यक था, परंतु खाकी और खादी के गठजोड़ के खुलासे के बाद..? जिस तरह से पुलिस की क्राईम फाइल में गाड़ी पलट जाती है...? उसी प्रकार कोर्ट में पेशी के दौरान भी विकास भाग सकता था...? लेकिन जयराम की दुनियां का विकास, पुलिस ने विकास दूबे कानपुर वाले रोककर पीछे छोड़ गया। जयराम की दुनियां के आकाओं की पहचान को...? पुलिस ने सही किया या गलत ये तो सवालों के घेरे में परंतु इस तरह के अपराध का खात्मा होनो भी जरूरी था...?।