न छूटे बच्चों के हाथ से कलम का साथ, यही सोच नहीं थमते मां के हाथ

साधना की शख्सियत 02-01

आकाश शुक्ल, सिलीगुड़ी

साहित्‍य की कल्‍पना किसी जाती-धर्म या किसी भाषा या किसी एक समाज की नहीं होती। भारत का साहित्‍य एक ऐसी विधा है जो गांव की गलियाें व शहरों की चकाचौध में प्रतिभाएं सामने आती रहती है। लेकिन उत्‍तर बंगाल के चाय बागानों में जो प्रतिभाएं है उसे सामने लाने की जरूरत है। कड़क चाय सोधी सुगंध के बगानों से जो साहित्‍य और काव्‍य की रसधारा निकल रही है , जरूरत है तो उन प्रतिभाओं को सामने लाने की। एनई न्‍यूज भारत उन्‍ही सपनों की उड़ान को पंख देने की कोशिश कर रहा है, और उम्‍मीद है कि चाय बगानों की प्रतिभा सामने आएगी और अपने समाज को एक मुकाम दिलाने में कामयाब होगी। अगर सपनों का लक्ष्य एक है, संकल्प के सपनों को पूरा करना है, तो जीवन की राह में आने वाली हर बाधा उसके सपनों को पूरा करने से रोक नहीं सकती। इंसान जब सपनों की दुनियां में डूब रहा है आदिवासी समाज? उनके हसीन सपनों को पूरा करने के लिए, इस समाज को एक नई दिशा देने की जरूरत है। अगर लक्ष्य एक हो तो,  कुछ पल के लिए सपनें अधूरे दिखते जरूर हैं, लेकिन वास्तव में वह अधूरापन उसे सपनों की मंजिल की तरफ लेकर जाता है। जहां सपने के अंधकार को दूर कर मंजिल के उजाले निकलते हैं। लक्ष्यों की पूर्ती, जिंदगी इम्तिहान लेती, पर लक्ष्य की प्राप्ति का संकल्प अगर सच्चे मन से हो पूरा अवश्यक होता है। साहित्य के क्षेत्र में लक्ष्य के सपनों को पूरा करने के लिए मन की भावना को काव्य रचना का रूप देने के लिए साधना की जरूरत होती है। जब काव्य रचना को प्रकाशन के मूल से जुड़ जाता है तो वही उसकी साधना से पहचान बनती है।
 आज एनई न्‍यूज भारत के युवा कवित्र‌ियों और युवा कवियों को स्‍थान दे रहा है। जिसके परिवार में कभी भी साहित्‍य की प्ररेणा देना वाला शायद ही कोई हो। उत्‍तर बंगाल के आलिपुरद्वार के घुमसीपाड़ा चाय बागान,रामझोड़ा चाय बगान में जन्‍मी और प्राथमिक शिक्षा भी उन्‍ही क्षेत्रों से करने के बाद वह सिलीगुड़ी को ओर रूख किया। उत्‍तर बंगाल विवि के सिलीगुड़ी कॉलेज से  हिन्‍दी में स्नातक करने जुट गई। जिसका नाम है जेरेलडिना मुचवार। मुचवार ने अपनी लगन और रूची को ध्‍यान में रखते हुए हिन्‍दी की कविताओं की ओर रूख किया और हो गई ' साधना की शख्सियत'। उत्तर बंग विश्वविद्यालय में शोध कर रहीं है। 
घुमसीपाड़ा चाय बागान, पीओ, रामझोड़ा, जिला आलिपुरद्वार के संत कपितानियो गर्ल्स हाई स्कूल से माध्यमिक, उच्च माध्यमिक संत मेरिज गर्ल्स हाई स्कूल और स्नातक सिलीगुड़ी काॅलेज से करने के बाद एनबीयू से शोध की छात्रा है। जेरेलडिना मुचवार हिंदी साहित्य के प्रति मेरी रूझान बचपन से था। मुझे कहानी,उपन्यास ,कविता पढ़ने का काफी शौक बचपन से है। हिंदी साहित्य के प्रति रूझान स्कूल के दिनों से हुई जब हमें प्रेमचंद जैसे महान रचनाकर की कहानियों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी रचनाएं मुझे प्रभावित करती है। हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है जो भारत के हर क्षेत्रों के अलावा दुनियां के कई देशों मे बोली जाती है। हिंदी भारत की राजभाषा तो बन गई पर इसकों राष्‍ट्रभाषा बनाने की जरुरत है, क्‍योंकि इससे अधिक अन्य कोई भाषा इतनी समृद्ध नहीं है।' खासकर मां उपर मेरी यह कविता  सिर्फ एक कविता नहीं बल्कि जीवन के अनछूए पहलू हैं और जिन्हे हमने देखा है और महसूस किया हूं।
 
कविता का शीर्षक है - मां के हाथ
मैनें देखा
गायब हो गई है 
मां के हाथों की कोमलता
खुरदरे और फटे हुए 
अन्दर के लाल मांस बाहर झांकते हुए
फिर भी मां 
उसी फटे-छीले हाथ से
लगातार 
तोड़ती रहती है पत्तियां 
चाहे उंगलियों में
दस्ताना हो या ना हो
चाहे तन को जलाती गर्मी हो या
कड़ाके की सर्दी या फिर 
घनघोर बारिश 
हाथ कभी रुकते नहीं
ढोती है बोझ सारा दिन
उरमाल के झोले में 
साथ में चुनते जाती
रसोई के लिए लकड़ियां
मोटी-पतली,
सुखी-कच्ची जो मिले
बटोर लेते 
मां के हाथ।
न पड़े परिवार के पेट में लात
न छूटे बच्चों के हाथ से कलम का साथ
यही सोच नहीं थमते
मां के हाथ
आठ घण्टे प्रति दिन
तोड़ती है पत्तियां पच्चीस केजी
तब जाके मां के नाम 
बनती है एक दिन की मजदूरी 
मजदूरी के बचाव के खातिर
फटते है मां के हाथ
छीलते है मां के हाथ
अन्दर के लाल मांस बाहर झांकते हुए
मां के फटे हाथ
 
जेरेलडिना मुचवार