विद्यापति मंच की स्थापना के बाद पहला सामजकि जागरुकता कार्यक्रम
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी : 'माछ मखान, पान ई मिथिला की पहचान' की परंपरा को आगे बढ़ते हुए पूर्वोत्तर का चिकननेक कहे जाने वाले शहर में अपनी पहचान बनाने के लिए सिलीगुड़ी में विद्यापति मंच का स्थापना 26अप्रैल 2020 को किया गया। इस मंच का मकसद सभी मैथिल को एकजुट होकर इस मंच के द्वारा समाज कल्याण में अपना योगदान देना और लुप्त हो रही मैथली भाषा और संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित है। इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए विद्यापति मंच सिलीगुड़ी अपनी स्थापना के कुछ माह बाद ही 200 गरीब परिवारों के बीच कोरोना संकट की इस घड़ी में सहयोग करने के उद्देश्य को लेकर लोगों के बीच में अनाज, मास्क, साबुन और सेनेटराईजर का वितरण किया। चम्पासरी के उत्तपल नगर के विद्यामंदिर पब्लिक स्कूल में आयोजित इस कार्यक्रम में मिथिला और मैथिली से जुड़े लोगों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में शहर की प्रख्यात गायनो डा तमामी चौधरी ने इसका उदघाटन किया। डा तमामी ने कहा कि आपदा के इस दौर में गरीबों की मदद करना ही सबसे बड़ी सेवा है। मैथिली समाज के लोगों ने जो पीडि़त मानवता के लिए जो कदम उठाया यह एक नेक कदम है। उम्मीद है आने वाले समय में विद्यापति मंच सिलीगुड़ी इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर पीडि़त मानवाता की सेवा करेगा। इस अवसर पर यूरोलाजिस्ट डॉक्टर एस के झा भी इस वितरण समारोह में मौजूद थे। सादगी में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में चंद्र कुमार झा, बबीता झा, पवन झा, ताराकांत चौधरी, गीतांजलि झा, अमित झा, अमित मिश्रा, गणपति चौधरी समेत मैथिली समाज के कई गणमान्य लोग मौजूद थे। मालूम हो कि मिथिला प्राचीन भारत का एक राज्य है, मिथिला की वर्तमान सांस्कृतिक के क्षेत्र में बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मधुबनी, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया, सहरसा और भागलपुर प्रमंडल तथा के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं। मिथिला की लोक संस्कृति की परंपरा कई सदियों से चली आ रही है। जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के साथ दुनियां के कई देशों में अलग पहचान बना रही है। इसकी प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है।