नाथुला की 1967 की तरह गलवान में भी सिखाया सबक
अन्य देशों की तरह भारत पर चीन के दबाव की नहीं चलेगी रणनीति
सिक्किम के नाथाला दर्रें में 1967 के आखिरी बार खूनी हुर्इ थी झड़प
90 सैनिकों की शहादत का बदले ड्रैगन के 400 सैनिको की हुर्इ मौत
“रविवार को प्रधानमत्री ने मन की बात में लद्दाख में पिछले दिनों चीनी सेना के साथ हुई भारतीय सैनिकों की झड़प को लेकर चीन को लेकर साफ संदेश दिया। देते हुए कहा, कि 'भारत की तरफ आंख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब मिला है. अगर भारत दोस्ती निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर उचित जवाब देना भी जानता है.' पीएम मोदी ने इस दौरान एक संस्कृत श्लोक के जरिये भी चीन पर निशाना साधते हुए चीन को चेतावनी देते हुए पीएम ने कहा, विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परिपीडनाय । खलस्य साधो: विपरीतम् एतत्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय। जिसका अर्थ होता है, 'अगर स्वभाव से कोई दुष्ट है, तो विद्या का प्रयोग व्यक्ति विवाद में, धन का प्रयोग घमंड में और ताकत का प्रयोग दूसरों को तकलीफ देने में करता है. लेकिन सज्जन की विद्या, ज्ञान के लिए, धन मदद के लिए और ताकत रक्षा करने के लिए इस्तेमाल होती है।”
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ीः चीन चाहता हैं कि हम उनके पिछलग्गू बन जाएं और पहले एशिया, फिर दुनिया में दबदबा कायम करने में हम उनकी मदद करें।'लेकिन भारतीय सेना के पराक्रम को भूल गया। भारत की वहीं सेना है जो 1962 से ही बदले की आग में झुलस रही थी, कि पांच वर्षा के बाद ही यानि 1967 में सिक्क्म के नाथुला दर्रे अपनी पराक्रम का लोहा मनवाया। भारत-चीन के इस आखिरी खूनी झड़प में जहां भारत के 90 सैनिक शाहीद हो गए, वहीं ड्रैगन की सेनाके 400 जवानों को भारतीय सेना ने मौत के घाट उतर कर अपनी बदले की आग को ठंडा किया। हलांकि इस झड़प में भारत के करीब 150 सैनिक घायल हुए जबकि चीन के 450 से अधिक सैनिक हताहत हुए। भारत के वीरों की मार को देखाकर ड्रैगन कुछ दिनों तक शांत था, लेकिन विस्तारवादी नीति के साथ बढ़ रहे व्यापार के घमंड में चूर ड्रैगन ने गलवान में फिर भीड़ने की हिमाकत की आर सेना ने शानदार जवाब दिया। हलांकि गलवान की घटना के बाद लद्दाख से लेकर सिक्किम में हिंसक झड़प के बाद तनाव भारत और चीन के बीच की सीमा के रूप में करीब 3,500 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) जो पूर्वी लद्दाख और उत्तरी सिक्किम के कुछ इलाकों में भारत और चीन, दोनों तरफ से सैनिकों की संख्या बढ़ाई जा रही है। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि इलाके में हालात सामान्य नहीं हैं। वहीं 5 मई को लद्दाख और फिर 9 मई को सिक्किम में दोनों तरफ के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। लद्दाख में तो दोनों तरफ के करीब 250 सैनिकों को चोटें आई थीं जबकि सिक्किम में करीब 10 सैनिक जख्मी हुए थे। चीन हमेशा दबाव की रणनीति के तहत पड़ोसियों पर धौंस जमाने की कोशिश करता रहा है। शायद ड्रैगन ने 2020 के भारत के साथ पंगा लेकर बड़ी भूलकर दी। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 5 मई से जारी तनावपूर्ण माहौल में भारत उकसावे की कोई बात नहीं कर रहा। जबिक चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने की बात कर भारतीयों को जरूर उकसा दिया है। मालूम हो क 1967 में भारत और चीन के बीच आखिरी सैन्य संघर्ष सिक्किम में हुआ उस सैन्य संघर्ष की खास बात थी, कि भारतीय सेना 1962 में चीन के साथ युद्ध में भारत को निराशा हाथ लगी थी। इसी निराशा को आशा में बदलने में सिर्फ पांच वर्षों के बाद ही भारत ने चीन को सबक सिखा दिया था। 1967 के युद्ध में चीन के 400 सैनिक मारे गए तो भारत के सिर्फ 90 सैनिक शहीद हुए थे। सबसे अहम बात यह है कि तब सिक्किम पूर्ण रूप से भारत में शामिल नहीं हुआ था और वहां राजशाही चल रही थी। चालबाज चीन को यही बात सता रही थी। सिक्किम का भारत में पूर्ण विलय नहीं हुआ है तो वहां भारत की सेना क्यों है? उसके करीब आठ वर्ष बाद ही सिक्किम का भारत में विलय हो गया। अगर सामरिक रूप से देखें तो तिब्बत से लगती सीमा चीन के व्यापार के लिए काफी अहम थी। हलांकि अभी व्यापार के लिए नाथुला एक महत्वपूर्ण रास्ता बन गया है। बातातें चलें कि 1967 की लड़ाई की वजह थी चीनी सैनिकों ने 13 अगस्त, 1967 को नाथू ला में भारतीय सीमा से सटे इलाके में गड्ढे खोदने शुरू कर दिए थे। जब भारतीय सैनिकों ने देखा कि कुछ गड्ढे सिक्किम के अंदर खोदे जाने लगे तो उन्होंने चीनी लोकल कमांडर से अपने सैनिकों को पीछे ले जाने को कहा। इसका कारण यह था कि चीनी सैनिकों ने सिक्किम की सीमा में अतिक्रमण किया जिसके जवाब में भारतीय सैनिकों ने आक्रामक रुख अपनाया। भारत ने चीन का किया ज्यादा नुकसान रक्षा मंत्रालय के आकड़ों के मुताबिक, खूनी झड़पों में 88 भारतीय सैनिक शहीद हो गए जबकि 163 सैनिक जख्मी हो गए थे। उधर, चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 400 सैनिक मारे गए जबकि 450 सैनिक घायल हो गए। भारतीय सैनिकों ने नाथूला में चीनी सैनिकों के कई अस्थाई किले नष्ट कर दिए थे। उस संघर्ष में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों के ऊपर 1962 के युद्ध का नशा पूरी तरह उतार दिया था।