निर्धारित समय से पहले चीन सीमा से जुड़ा‘चिकननेक’
डोकलाम से लिया सबक, सीमा क्षेत्रों में बिछा सड़कों को जाल
सड़क निर्माण से घबराया ड्रैगन, गलवान में किया हिंसक झड़प
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी : भरतीय सेना कितनी सक्षम है, इसका उदाहरण गलवान की घटी में बिहार रेजीमेंट के जवानों ने दे दिया। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि देश के दुर्गम पहाडि़यों के बीच सड़क का निर्माण करना कठीन था, जो किसी भी समय सेना के साजो-सामान और रसद की पहुंच आसान हो सके। इसके लिए डोकलाम की घटना से सबक लेते हुए केन्द्र सरकार ने सबसे पहले भारत-चीन सीमा पर सड़कों के पहुंचाने की योजना बनाई। इसी योजना को मूर्त रूप देते हुए बार्डर रोड आर्गनाइजेशन (बीआरओ) की ‘स्वास्तिक’ ने पहाड़ों का सीना चीर के दुर्गम रास्तों को आसान बनाते हुए चालबाज चीन के गर्दन तक सड़क पहुंचा दी। बीआरओ ने उत्तरी सिक्किम में यातायात के लिए चुंगथांग के पास मुंशीथांग में तीस्ता नदी पर स्थित पुल को बीआरओ की स्वस्तिक टीम ने निर्माण कर सीमा क्षेत्र तक पहुंच को आसान बना दिया। बीआरओ ने बुनियादी ढांचा विकास परियोजना में पुल तक एप्रोच रोड बनाना भी शामिल था,360 फीट लंबे बेली सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुआ और जनवरी में संपन्न हुआ। जो समय सीमा से पहले सड़कों और पुल को 21 मार्च को यातायात के लिए खोल दिया गया। इस पुल के तैयार होने के बाद जहां पूर्वोत्तर का चिकननेक कहा जाने वाला सिलीगुड़ी से सिक्किम के साथ-साथ चीन की सीमा क्षेत्र में पहुंचना आसान हो गया। वहीं तीस्ता नदी पर बने पुल से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को नदी पार करने में सहुलियत हो रही है। वहीं यह आस-पास के क्षेत्रों में तैनात भारतीय सशस्त्र बलों के लिए रसद की आवाजाही की सुविधा आसान हो गई। बताते चलें कि नवनिर्मित पुल पर पहले 180 फीट स्पैन के स्टील का ब्रिज था, जो पिछले जून 19 में मौसम की भरी वर्षा के कारण स्टील पुल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। जिसके कारण दूर दराज के क्षेत्रों में तैनात सेना के जवानों को रसद समेत अन्य सामानों की पहुंच कठिन हो गया था। लेकिन बीआरओ ने इस परिस्थिति को देखते हुए इस पुल को तैयार किया। जबकि इस पुल की योजना सरकार ने 2018-23 की ‘लॉन्ग टर्म रोल ऑन वर्क्स’ योजना उत्तरी और पूर्वोत्तर सीमाओं पर सड़क बुनियादी ढांचे के विकास और निर्माण पर केंद्रित था। भारतीय सेना के रणनीतिकार डोकलाम बेस जो सिक्किम के पास विवादित डोकलाम पहाड़ पर स्थित है। पहले सिक्किम से पहुंचने में समय लगता था, पर अब कम समय में अधिक समय भार वहन क्षमता वाले आसानी से पहुंच सकते है। मालूम हो कि भारतीय सेना के साथ 2017 में डोकलाम में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साथ तनावपूर्ण स्थिति में थी। तब करीब सात घंटे में सेना के बेस पर खच्चर से पहुंचा जाता था। सूतों के अनुसार नवनिर्मित भीम बेस-डोकलाम दुनियां के युद्ध के मोर्चे पर सबसे ऊपर स्थिति है और यहां किसी भी दुश्मन की आक्रामकण के मद्देनजर देश को पहले से ही रक्षा तैयारियों को रखना पड़ता है। बीआरओ ने सड़क पर काम डोकलाम घटना से पहले 2015 में शुरू करने की अनुमति मिली थी। डोकलाम सड़क मार्ग 3601 से 4200 मीटर के पहाड़ों की ऊंचाई होकर गुजरती है जा (11,811 फीट से 13,779 फीट से होकर गुजरता है। बताते चलें कि भारत डोकलाम पहाड़ को भूटानी क्षेत्र का निर्विवाद हिस्सा मानता है, जबकि चीन इसे अपनी चुम्बी घाटी का हिस्सा मानता है। खंजर के आकार की पहाड़ी जो पश्चिम में सिक्किम और पूर्व में भूटान के बीच स्थित है। विवादित डोकलाम क्षेत्र लगभग 89 वर्ग किलोमीटर है जिसकी चौड़ाई 10 किमी से कम है। हलांकि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और भारतीय सेना के बीच गतिरोध 28 अगस्त, 2017 को समाप्त हो गया। बीजिंग और नई दिल्ली दोनों ने घोषणा की कि उनके सभी सैनिक विवादित स्थल से हट गए हैं। जबकि अप्रैल 2018 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग के बीच वुहान शिखर सम्मेलन में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच तनाव को कम करने के लिए कई चरणों की बैठक की गई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एलएसी की अलग-अलग,पहचान है।