साधना की शख्शियत-33
न्यूज भारत, सिलीगुड़ी: सपनों की मंजिल, छूने की तमन्ना, रूचि अगर निष्ठा सच्ची हो, तो प्रकाशित होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। दिल से की गई रचनाएं अपनी एक विरासत होती है। रचना लिखना और रचनाओं के संग्रह ही उसकी लगन और सच्ची निष्ठा ही उस रचनाकार के " साधना की शक्शियत" होती है। ऊहापोह भरी जिंदगी में लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन अगर सर्मपण की भावना दिल से हो तो किसी भी मंजिल को हासिल करना मुश्किल नहीं है। हलांकि रास्ते पर चलने पर कई मुश्किलों का सामना करना होता है, लेकिन अगर कोई इस मुश्किलों के दौर में अगर कोई अपनी रचना गुमनाम होने के बावजूद निरंतर लिखता रहता है। तो सफलता के सपनें खुद-बखुद समय उस रचनाकार के सपनों को पूरा करते हैं।
‘ ‘बिहारी के परिवार में जन्म, नौकरी की नैकरी के कारण मैंने कई सारे राज्यों की संस्कृति और सभ्यता देखने के बाद स्नातक की पढ़ाई सिलीगुड़ी कॉलेज से और स्नातकोत्तर की पढ़ाई सिक्किम विवि से की है। बी.एड करने के दौरान ही एक शिक्षक के रूप में जीवन की शुरूआत किया। बचपन से खेल, कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम में रूचि रही, विद्यालय में हर प्रतियोगिता में भाग लेना शौक था।शिक्षक बनने का सपना पूरा कर लिया। पर बचपन से दिन के आईने में जब भी देखती हूं तो हमेशा लिखने प्रेरणा मिलती रही। मुझे मेरे भावों को कविता में अभिव्यक्त करके बहुत खुशी मिलती है। बार-बार दिल के आईने के सपनें को पूरा करना के लिए प्रयास करती रही। लेकिन सपनों की मंजिल बंगाल में मिलेगी ये पता नहीं था...?’’ नेहा कुमारी,
सिलीगुड़ी।
मुझे खामोश रहना चाहिए
देख कर भी अन्याय को,
नज़र अंदाज़ करना चाहिए,
मुझे खामोश रहना चाहए।
जान के भी सच्चाई को,
तुम्हारी हर झूठ सुन्ना चाहिए,
मुझे खामोश रहना चाहिए।
रोते बिलखते बालकों की चीख को,
नज़र अंदाज़ करना चाहिए ,
मुझे खामोश रहना चाहिए।
जुल्म होते देख के भी,
मुझे हर जुल्म को सहना चाहिए,
मुझे खामोश रहना चाहिए।
दफ़न होती भावनाओं को
चुप निगाहों से देखना चाहिए,
मुझे खामोश रहना चाहिए।