30 हजार बच्‍चों में से तीन हजार बच्‍चों का ही परिक्षण क्‍यों: हाईकोर्ट

प्रवासी श्रमिकों के कितने बच्चे कोरोना से प्रभावित? हाईकोर्ट ने राज्य से रिपोर्ट तलब की

न्‍यूज भारत, कोलकाता : कोरोना संकट के बाद बंगाल से विभिन्न राज्यों में जिविकोपार्जन के लिए गए प्रवासी मजदूर अब बंगाल लौट रहे है। राज्य में कोरोना स्थिति में अनाथों की स्वास्थ्य स्थिति पर गौर करने के लिए उच्च न्यायालय ने एक स्व-प्रेरित मामला दायर किया था। तभी प्रवासी श्रमिकों के बच्चों का मुद्दा उठा। इस बारे में पूछे जाने पर राज्य के स्वास्थ्य विभाग और बाल और महिला कल्याण विभाग ने रिपोर्ट में कहा कि 4 जून को 29857   प्रवासी श्रमिकों में से कुल 5,360 बच्चों को संस्थागत क्वॉरंटाइन में रखा गया है, और घर के आइसोलेशन में 24298  बच्चे हैं। इनमें से 3005  बच्चों के कोरोना का परीक्षण किया गया है और 743 मामलों में विशेष उपाय किए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने 43 बच्चों की स्थिति को 'उच्च रेफरल' के रूप में भी उल्लेख किया है। जबकि पिछले कुछ हफ्तों में हजारों बच्चे अपने माता-पिता के साथ दूसरे राज्यों से घर लौट आए हैं। उनमें से कितने बच्चे कोरोना से संक्रमित हैं? उनकी क्या हालत है? उन्हें दो वक्त का भोजन मिलता है या नहीं? यदि तबीयत खराब होती  है तो इलाज की क्या व्यवस्था है? इन सब को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी है। रिपोर्ट के अनुसार , न्यायमूर्ति हरीश टंडन और न्यायमूर्ति सौमेन सेन की खंडपीठ ने स्वास्थ्य सचिव रूपम बनर्जी से पूछा, जो कि सुनवाई के समय उपस्थित थे, क्यों 30,000 में से केवल 3000 बच्चों का कोरोना परीक्षण किया गया। बाकी के बच्‍चों का यह परीक्षण क्यों नहीं? साथ ही, परीक्षण किए गए कितने बच्चे कोरोना पॉजिटिव थे, और उनके मामले में सरकार क्या कार्रवाई की गई, रिपोर्ट में इसका उल्लेख क्यों नहीं किया गया क्‍यों, 'उच्चतर रेफरल' और 'विशेष व्यवस्था' से क्या अभिप्राय है क्‍यों,  इसके अलावा, संस्थागत क्वॉरंटाइन के बुनियादी ढांचे और बच्चों की देखभाल के लिए डॉक्टरों की संख्या के बारे में रिपोर्ट में कुछ भी क्यों नहीं बताया है? डिवीजन बेंच ने राज्य को सभी सूचनाओं को बताते हुए अगले 16  दिनों के भीतर एक पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।