बंगाल की बेटी पर बरसी ममता
भारी बहुमत के साथ दीदी की सत्ता में वापसी
बंगाल की सियासत से वाममोर्चा व कांग्रेस का सफाया
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
“खेला होबे-,खेला होबे” भाजपा ने बंगाल विधानसभा की सत्ता हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इतने कड़े टक्कर के बावजूद भी भाजपा ने ममता बनर्जी को मात नहीं दे सकी। दीदी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को सत्ता से हटाने का अधूरा रह गया।
मालूम हो कि इसी तरह अटल की सरकार के समय भाजपा शाईनिंग इंडियां का जोशा था, लेकिन ढाक के तीन पात सामने आ गया। बंगाल विधान सभा चुनाव में जिस पार्टी का पलड़ा लोग उसी तरफ पाला बदलते हैं भाजपा को यही समझने में भूल हो गइ। साथ अपने पार्टी के नेताओं की अनदेखी कर बाहरी के नेताओं को तरहजीह दी, यह भी एक प्रमुख कारण है। वहीं लोकसभा चुनाव में मिले मत के प्रतिशत को बचाने में नाकामयाब भाजपा हवा में इस बार दौ सौ के पार कह रही थी। जबकि नाराज अपने कार्यकार्ता का मनाने या उनसे बात करने के बजाय दूसरी पार्टी से आए नेताओं को लेकर हवा में जीत का जश्न मनाने की तैयारी थी। वहीं सबसे अहम बात यह मिडिया के शोर में उपर के बड़े नेताओं को जीत के आश्वासन का घूंट पिलाकर यही कहती रही “परिर्वतन होबे”। उनकी इसी रिर्पोट के आधार पर केन्द्रीय दल भी परिर्वन के सपने देखने लगा। इस लिए फिर एक बार शार्इनंग इंडिया के तरह बंगाल में भाजपा का परिर्वतन रथ पंचर हो गया।
बाताते चलें कि तृणमूल ने भाजपा की हिंदू वोटों की ध्रुवीकरण करने का प्रयास तो दीदी ने तोड़ दिया है। भाजपा की काट के लिए दीदी ने 'बंगाल को चाहिए अपनी बेटी का नारा देकर महिला वोटरों समेत बंगाल के वोटरों को बड़े पैमाने पर अपने पाले में खींचा व सफलता हासिल की। इस क्रम में ममता ने अपनी पार्टी से 50 महिला उम्मीदवारों को इस बार मैदान में भी उतारा था। वहीं दीदी ने दूसरे राज्यों से आने वाले भाजपा नेताओं के ममता बनर्जी पर सीधे हमले कर बाहरी के मुद्दे को भुनाते हुए टीएमसी ने स्थानीय बनाम बाहरी का दांव खेलकर बांग्ला संस्कृति, बांग्ला भाषा और बंगाली अस्मिता के फैक्टर को हर जगह कहते हुए फिर सत्तापर काबिज हुइ है।
ममता बनर्जी ने लगातार अपनी चुनावी रैलियों में कहती थी, कि वह गुजरात के लोगों को बंगाल पर शासन नहीं करने देंगी, उनका साफ इशारा मोदी व शाह पर था। वहीं दूसरे राज्यों से यहां भाजपा के प्रचार के लिए आए नेताओं को वह लगातार बाहरी गुंडा कहकर संबोधित करतीं रहीं। इसके जरिए उन्होंने जमकर बंगाली कार्ड खेला। इससे खासकर महिलाओं के साथ बंगाली जनमानस का भरोसा जीतने में ममता कामयाब रहीं।