कान्हा को समझा देना...

रंगों का पर्व होली अब परवान चढ रही है। पूरे देश में जहां होली पर विभिन्‍न प्रकार के आयोजन होता है। ब्रज की होली, लठ्ठमार होली के गांव की होली का आनंद कुछ और ही होता है। होली के पावन पर्व अवसर पर प्रस्‍तुत है अमरावती गुप्‍ता की काव्‍य रचना।  

काहे सोवत नैन जगाये रहे

मन्द मन्द मुस्काये रहे

हे सांवरे तेरी नियत कछु  

मोहे समझ नही आये रहे

राधा प्यारी.. होली आई

रंग भर पिचकारी मारेंगे

तेरी घाघरा, तेरी चोली तुझको भी रंग डालेंगे

छुप कर मोसे कैसे बचोगी

बोलो अबके होली में

बाहर निकलेंगे रंगों संग

जब हम अपनी टोली में

होली के पहले ही जसोदा

मैया से बात करूंगी

अपनी सारी मन की बातें

उनपर साफ करूंगी

कहूँगी मैया मोरी यशोदा

कान्हा को समझा देना

सारी सखियाँ मिल रंगेंगे

हो सके तो उन्हें बचा लेना

सारे साल की कसर निकालेंगे हम

अबके होली में

घर से बाहर जा नही पाये

आप उन्हें बहला लेना

रोज हमारी मटकी फोड़े

रोज ही हमें भिंगोता है

आप उन्हें समझा नही सकती

ऐसा भी कहीं होता है

अब आई है अपनी बारी

चुन चुन बदले ले लेंगे

खेंलेंगे कान्हा संग होली

अबीर गुलाल से रंग देंगे .....

अमरावती गुप्ता .....