शंकर घोष को टिकट देने पर भाजपा में बगावत, प्रवीन पर भी लगाया आरोप
लेफ्ट हुआ राईट, सिलीगुड़ी सीट पर गुरु-शिष्य की लड़ाई में कही कोई राज तो नहीं
शंकर घोष टिकट बदला नहीं गया तो आंदोलन की चेतावनी
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
मिशन-2021 की लडाई अब ‘खेलाहोबे’ पर उतर कर आई, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जैसे जारी किया है। उसके बाद से पार्टी के अंदर असंतोष व विद्रोह के स्वर उठने के कारण भाजपा के सामने नया बखेडा शुरू हो चुका है। टिकट नहीं मिलने से पश्चिम बंगाल की अधिकतर सीटों पर असंतोष के स्वर उभरने लगे है। इसी बाहरी प्रत्याशियों को लेकर उभरे असंतोष ने जहां अलिपुरद्वार की सीट को बदलना पड़ा। वहीं जलपार्इगुड़ी, कालचीनी, डाबग्राम-फूलबाड़ी व सिलीगुड़ी समेत अनेक सीटों पर भाजपा को नए प्रत्याशियों का विरोध शुरू हो चुका है। सिलीगुड़ी विधानसभा सीट पर माकपा प्रत्याशी शंकर घोष को टिकट दिए जाने के विरोध में भाजपा के पूर्व पदाधिकारी बगावत के सुर शुरू तेज करते हुए शनिवार को सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में पत्रकारों से वार्ता के दौरान अधिवक्ता नृपेन्द्र नाथ दास ने कहा कि माकपा नेता शंकर घोष को टिकट भाजपा के सिद्धांत के खिलाफ है। इससे यहां के भाजपार्इयों की कार्यशौली व कर्मठता पर कुठाराघात है, जो कभी बर्दस्त नहीं किया जा सकता। क्योकि जो वामपंथी पिछले 30 वर्षे से वामफ्रंट के राज में अपना खून पसीना बहाया है और उसके रग-रग में कामरेड विचारधारा है, तो कैसे भाजपा जैसे हिंदूवादी संगठन का काम कर सकता है ? वहीं कुछ दिन पहले मंच से प्रधानमंत्री समेत अन्य भाजपा नेता उसके निशाने पर थे। हलांकि चुनावी टिकट के लिए कपड़े का रंग तो बदल गया है, लेकिन वास्तविकता में मन आज भी कामरेड का ही उदाहरण हाथ पर बने टैटू है ? इसलिए हम हिंदूवादी संगठन भाजपा के केन्द्रीय चुनाव समिति अनुरोध करते है कि शंकर घोष के टिकट को वापस किया जाय और यहां किसी अन्य सिलीगुड़ी सीट से टिकट दिया गया।
पत्रकार वार्ता में भाजपा, सिलीगुड़ी सांगठनिक जिला कमेटी के पूर्व अध्यक्ष नृपेन दास, डा. कृणनेंदू दे, सुब्रतो साहा, व कल्याण साहा ने शंकर घोष की उम्मीदवारी का खुलकर विरोध किया है। इन नेताओं ने भाजपा के जिला अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल समेत अन्य नेताओं पर जमकर हमला बोला। भाजपा के सिलीगुड़ी सागठनिक जिला के पूर्व अध्यक्ष नृपेन दास ,कृष्णेंदु दे सहित अन्य भाजपा नेताओं ने शकर घोष को उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध करते हुए कहा कि शकर घोष रंग बदलने वाले इंसान हैं। माकपा में इतने दिनों तक रहते हुए भाजपा को गाली देते रहे और और अब विधानसभा चुनाव में टिकट पाने के लिए भाजपा में शामिल हो गए। इन नेताओं ने कहा कि यदि शंकर घोष चुनाव जीतते हैं तो बाद में वह दोबारा माकपा में लौट जाएंगे। भाजपा के इन पुराने नेताओं ने शकर घोष के साथ-साथ सिलीगुड़ी सागठनिक जिला अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल के खिलाफ भी नाराजगी जताते हुए इन नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रवीण अग्रवाल सिलीगुड़ी में पार्टी कार्यालय स्थापित करने के लिए दिल्ली से करोड़ों रुपये लेकर आए, और उन पैसों का कोई हिसाब किताब नहीं है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी कार्यालय बनाने के लिए सात करोड़ रुपये मिले। यह पैसा कहां गया,इसका कोई हिसाब किताब क्यों नहीं है। वहीं प्रस्तावित जमीन भी विवदों के घेरे में है। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि शंकर को टिकट देने में पैसे का खेल हुआ है। भाजपा के सिलीगुड़ी सांगठनिक जिला के पूर्व अध्यक्ष नृपन दास ने यह भी कहा कि वह कभी भी भाजपा उम्मीदवार शकर घोष का समर्थन नहीं करेंगे। वहीं अगर टिकट नहीं बदला गया तो इसके लिए हम लोग आंदोलन भी करने के लिए तैयार है। श्री दास ने बताया कि शंकर घोष को टिकट देने में कोई ना कोई साजिश जरूर है और इस साजिश के पीछे वर्तमान का जिला संगठन पूरी तरह लिप्त है।
गुरु शिष्य की लड़ाई में कही कोई राज तो नहीं
भाजपा के बगावती नेताओं ने शंकर घोष को भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने को पार्टी के सिद्धांतो पर कुठाराघात और माकपा प्रत्याशी अशोक भट्टाचार्य के सहयोग करने का भी आरोप लगा है। उन्होंने बताया कि अंर्तराष्ट्रीय सीमाओं से घीरे पूर्वोत्तर के चिकननेक कहे जाने वाले शहर सिलीगुड़ी की सीट जीतना भाजपा ही सभी दलों के लिए महत्वपूर्ण होता है। बंगाल में काटें के संर्घष के बीच किसी कामरेड विचार धारा के व्यक्ति को टिकट देना समझ ने परे है। नेताओं ने कहा कि इस के पीछे पूरी तरह से माकपा की साजिश नजर आ रही है। क्योंकि बंगाल में एक मात्र नगर निगम पर तृणमूल के सहयोग से माकपा नेता काबिज थे। वहीं भाजपा की प्रमुख प्र्रतिद्वंदी दल भी इस सीट पर प्रो मिश्रा को टिकट दिया, वहां भी बगावत चल रहा है। इसलिए अगर राजनैतिक नजरिये देखें तो स्पष्ट तौर से भाजपा भी तृणमूल की माकपा उम्मीदवार को वाकओवर देने के मूड में दिख रही है। वहीं लेफ्ट को राईट कराने में भाजपा की जिला कमेटी के साथ-साथ कुछ बड़े नेता और सांसद की भूमिका संदीग्ध है।