साधना की शख्शियत-32

न्यूज़ भारत, सिलीगुड़ीः सपनों की मंजिल का पाने की तमन्‍ना, काव्यों के प्रति रूचि अगर निष्ठा सच्ची हो, तो प्रकाशित होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। रचनाओं की अपनी विरासत होती है, रचना लिखना और रचनाओं के संग्रह से ही उसकी लगन और सच्ची निष्ठा ही उस रचनाकार के " साधना की शक्शियत" होती है। ऊहापोह की जिंदगी और पारिवारिक जिम्‍मेदारियों का निर्वहन एक गृहणी के लिए बहुत मुश्किल होता है। इन तमाम मुश्किलों के बीच अगर कोई अपनी रचना को बिना नाम मिले निरंतर लिखता रहता है। तो सफलता के सपनें खुद-बखुद समय उस रचनाकार के सपनों को पूरा करते हैं।

‘’बचपन से पठन-पाठन में रूचि रही जो कही स्थान तो नहीं, परंतु मैं अपनी इस विधा को अपने रोम रोम में बसाया, और अपनी रचनाओं को डायरी के पन्नों पर मूर्त रूप दे रही। जीवन में निरंतर प्रयास करना ही मेरा लक्ष्य है।  काव्य की रचनाओं का शौक है, पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति के साथ अपनी मन के खुशी के लिए करतीं हूं। हलांकि पति के सहयोग से मेरी रचनाओं को कहीं कहीं कुछ स्थान जरूर मिला है। पारिवारिक व्यस्तता के बीच भी आज समय मिलने पर रचनाओं को डायरी के पन्‍नों पर लिख लेती हूं।" आज दूसरी बार न्‍यूज भारत के माध्‍यम से अपके समक्ष हूं, उम्‍मीद है आपको ‘’आधे अधूरे है....’’ पसंद आए। अनीता तिवारी, सिलीगुड़ी

आधे अधूरे है....

आधे अधूरे हैं हम सभी, कभी चाह नहीं की संपूर्णता की...

लेकर फिरते हैं एक ऐसा चेहरा, जिस पर छाया है रंग कायरता की...

छोड़कर सभी लोग यथार्थ, पीछा कर रहे हैं काल्पनिकता की...

ना कर औरों की परवाह, सोच में डूबे हैं केवल अपनी आवश्यकता की...

हर दिन भेदभाव बढ़ाते हैं हम सब, बावजूद उसके ढोंग करते हैं एकता की...

आज हंस रही है नैतिकता हम पर, एक पर एक मिसाल बना रहे हैं सब मूर्खता की...

अंधविश्वास दर्शाता है हमारी सामाजिक कुरीतियां भी,

ताख पर रखकर अपनी बुद्धि बातें होती हैं जागरूकता की...

सोचकर यह सब ह्रदय तड़प उठता है,

मन के दर्द की माला में बढ़ जाती है एक मोती चिंता की...।