मणिपुर के एक गांव ने कोरोना काल में पेश की “आत्मनिर्भर भारत” की मिशाल
असम राइफल्स के साथ मिल पहाड़ाें का सीना चीरकर में 35 गांवों को संपर्क को जोड़ा
कोरोना काल में बनी सड़क, उद्घाटन पर खुशी से झूमें गांव के लोग, कार्यक्रम आयोजित
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी/मणिपुर
"आवश्यकता आविष्कार की जननी है" इस कहावत का एक-एक शब्द सच है। इससे पता चलता है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी चीज़ को प्राप्त करने का इच्छुक हो तो यह प्रक्रिया कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो वह किसी भी तरह से इसको प्राप्त कर ही लेता है। यह पुरानी कहावत का एक उपयुक्त उदाहरण इस धरती पर आए पहला व्यक्ति का होगा। धारती पर मानव सभ्याता के आने के बाद मानवीय आवश्यकता थी भोजन, जिसने पहले व्यक्ति ने खाने के लिए तैयार किया। इसके बाद रहने के लिए घर का निर्माण करने और जंगली जानवरों से बचने के लिए हथियार बनाने का कार्य किया। जिस तरह से यह सब किया जाना था उन्होंने इन सभी कार्यों को बिना किसी पूर्व ज्ञान के पूरा किया होगा। यदि इन सभी चीजों की मनुष्य अस्तित्व के लिए ज़रूरत नहीं होती तो वह इन सभी का आविष्कार नहीं करता ? इन्हीं आवश्यकता को देखाते हुए मणिपुर तमेंगलोंग जिले के तमेई गांव के लोगों ने असम राफल्स के 44 बीएन के साथ मिलकर कोरोना संक्रमण काल में दुर्गम पहाडा़ें का सीना चीरकर 35 गांवों को जोड़ने वाली जर्जर सड़क की मरम्मत की। इस कार्य के लिए किसी भी सरकार की सहायता के अभाव में यहां के 22 संप्रदाय व AR / IGAR (EAST) के तत्वावधान में 44 असम राइफल्स ने गांव वालों की समस्या को देखाते हुए इसकी पहल की और लिंक सड़क की मरम्मत शुरू कर दी।
ग्रामिणों के साथ असम राइफल्स के महानिरीक्षक
मालूम हो कि कोरोना संक्रमण के प्रतिबंधों में खाली समय के दौरान इस समय में मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के तमेई सब डिवीजन के दूरदराज के ग्रामीण इलाकों से आशा की एक नई किरण आई। यहां लोगों के आत्मिनर्भर भारत की मिशाल पेश करते हुए 35 गांवों के संपर्क को जोड़ने वाली जर्जर सड़क सड़क का निर्माण कर आवश्यकता ही आविश्कार” की जननी है का सच कर दिखाया। वहीं 44 बटालियन असम राइफल्स ने मणिपुर और नागालैंड दोनों के बीच को दूर दराज के गाँवों को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण तमी-दिखुइराम सड़क की मरम्मत के लिए अपना सहयोग दिया। बताते चलें कि 44 असम राइफल्स ग्रामीणों से बात कर सड़क के निमार्ण की पहल से प्रेरणा लेते हुए डिकुइराम गांव के स्थानीय लोगों ने भी अपने खेत के काम को पीछे छोड़ते हुए धूप में सड़क बनाने का संकल्प लिया और असम राइफल्स के साथ मिलकर एक अनोखे सपनों को साकर किया। बताते चलें कि सड़क का मरम्मत कार्य 12 अक्टूबर 20 को शुरू हुआ था और जिसे 04 जनवरी 21 तक पूरा कर लिया गया। कोरोना संक्रमण काल में सभी बाधाओं पार करते हुए काम कर 22 किमी सड़क के मरम्मत कार्य को पूरा करने में 85 दिन लगे। वहीं ग्रामिण इस मरम्मत के काम को 35 गांवों को नए साल का तोहफा दिया है। वहीं अब दूर-दराज के गावों के लिए उनके पास आत्मनिर्भरता के अवसरों में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सरकारी विकासात्मक योजनाएं और अब बाजार भी उपलब्ध होंगे।
पहाडा़ें का सीना चीरकर आत्मनिर्भर भारत की मिशाल पेश करते जवान व ग्रामीण
इस सड़क का उद्घाटन असम राइफल्स के आर्इजी मेजर जनरल रंजीत सिंह ने किया। इस उद्घाटन समारोह में आसपास के क्षेत्रों से भारी भीड़ की उपस्थिति में IGAR (EAST) द्वारा 09 फरवरी 21 को क्षेत्र के स्थानीय लोगों को समर्पित किया गया था। इस अवसर पर बोलते हुए श्री सिंह ने लोगों से कहा कि आत्मनिर्भर होने की मिशाल जो आप लोगों ने पेश किया है वह किसी पेशेवर कौशल हासिल करने और राष्ट्र के विकास में रचनात्मक योगदान देने हमत्वपूर्ण भूमिका निभा है। वहीं 44 असम राइफल्स ने सम्मानित किया और उनके साथ दोस्ती के बंधन को और मजबूत किया। उन्होंने कहा कि असम राइफल्स के साथ स्थानीय लोगों ने भारत के प्रधान मंत्री द्वारा आत्मनिर्भरता की एक नई कहानी लिखी है। निश्चित रूप से असम राइफल्स और स्थानीय लोगों के समन्वित प्रयासों ने ग्रामीणों को कोरोना महामारी की वर्तमान स्थिति में आशा की रोशनी दिखाई है। इस बावत 44 असम राइफल्स के कमाडिंग आफिसर कर्नल प्रदीप कुमार ने बताया कि दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद यह क्षेत्र अंर्तराष्ट्रीय सीमा भी पास है वहीं 35 के संपर्क में बाधा आ रही थी। ग्रामिणों की समस्या को देखते हुए और अंर्तराष्ट्रीय सीमा की चौकसी में हो रही परेशानी को देखते हुए हम, हमारे जवान व ग्रामिणों इस कार्य को करने का साहस दिखाया और हम सफल हुए।
उद्घाटन के बाद ग्रामीणाें का पुरस्कृत करते असम राइफल्स के महानिरीक्षक मेजर जनरल रंजीत सिंह