बंगाल में पाट की डोर हुई ढीली तो चीनी मिठास फिकी

रोजगार के अवसर हुए नष्ट, चीनी व पाट का व्यापार भी हुआ चौपटः प्रशन्नजीत साहा  

आजदी के इन दो उद्योग पर किसी भी सरकारें नहीं दिया ध्यान, भाजपा से उम्‍मीदें बढ़ी

पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी

आजादी के पहले बंगाल एक उद्योग की नगरी कहा जाता था। यहां अंग्रेजी हुकूमत ने चीनी मिल व जूट के कारखाने लगाए। लेकिन दुखद यह रहा कि आजादी के बाद किसी भी सरकार ने इन दो महत्वपूर्ण उद्योग पर ध्यान नहीं दिया जिसके कारण चीनी उद्योग व पाट के चटकल उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो गए। जबकि अभिभाजित भारत (वर्तमान में बंगलादेश) अर्थात पूर्बी बंगाल में चीनी की मिठास को बढ़ाने और पाट के उद्योग रफ्तार देने की मुहिम में अंग्रेजी हुकूमत ने खुद शुरू किया था। उक्त बातें सिलीगुड़ी के चाय उद्यमी प्रशन्नजीत साहा ने कही। उन्होंने बताया कि इस बजट में केन्‍द्र की सरकार ने 1000 करोड़ चाय मजदूरों के विकास के लिए दिया गया है। इससे चाय बगान के मजदूरों की स्‍थि‍ति में काफी सुधार होगा। श्री साहा ने कहा कि वर्तमान में चाय उद्योग में उत्‍तर बंगाल में करीब 5 लाख डायरेक्‍ट और करीब 5 लाख इनडायरेक्‍ट मजदूर हैं। इनमें से महिलाओं की भागीदारी भी 50 प्रतिशत की है। केन्‍द्र की सरकार इस बजट में इन मजदूरों के लिए धन मुहैया कराकर चाय उद्योग के मजदूरों को एक राहत पहुंचाई है।

जूट उद्योग की चर्चा करते हुए श्री साहा ने बताया कि ब्रिटि‍स काल में कोलकता में कई चटकल उद्योग लगाए गए। उस दौरान बंगलादेश भारत का अभिन्‍न अंग था। जूट मिलें कोलकता के आसपास लगाए और पाट के उत्‍पादन का विस्‍तार होने लगा। लेकिन आजादी के बाद बंटवारे में वर्तमान का बंगला देश पूर्वी पाकिस्‍तान हो गया जो अब (बंगलादेश) है। बंटवारे के बाद मिले बंगाल में और पाट की खेती पूर्वी पाकिस्‍तान में चंली गयी। इस लिए पाट के अभाव में आजादी के बाद यहां सरकारी उदासीनता के कारण अधिकातर जूट मिलें बंद हो गई और हजारों मजदूर बेरोजगार हो गए। चीनी मिलों की चर्चा करते हुए कहा कि उस दौरान में बंगाल के मुर्शिदाबाद व बेलडागां में ब्रिटिस ने दो चीनी मिले लगाई थी। लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण आज वह चीनी में मिलें अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। जबकि अन्‍य राज्‍यों की सरकारों ने चीनी उद्योग पर ध्‍यान दिया जिसके कारण वहाँ आज भी चीनी उद्योग विकसीत है। जैसे की उत्‍तर प्रदेश में करीब 80 महाराष्‍ट्र में करीब 200 और बिहार में करीब 40 मिलों से चीनी के उत्‍पादन होते हैं। जबकि बंगाल में सि‍र्फ दो चीनी मिले थी जो गन्‍ना के अभाव में बंद हैं। श्री साहा ने कहा कि बंगाल में आजादी बाद जितनी भी सरकारें आई सब इस उद्योग की अनदेखी की ज‍िसके कारण बंगाल में चीनी और चटकल उद्योग दम तोड़ रहा है।