कागजी है दीदी की चाय सुंदरी योजना : राजू बिष्‍ट

न्‍यूज भारत, सिलीगुड़ी : जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है वैसे वैसे तृणमूल कांग्रेस अपनी हार की हताशा में विभिन्‍न प्रकार की योजनाओं को माध्‍यम से लोगों को अपनी और खींचन की कोशिश कर रही है । लेकिन हम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी से जानना चाहता हूं कि अपने एक दशक के   शासन 2011 से 2019 तक चाय बगान व चाय श्रमिकों के हित में ममता बनर्जी की सरकार ने कोई भी योजना प्रारंभ किया है क्‍या। जबकि चाय श्रमिकों के न्यूनतम मजदूरी को लेकर लगातार हो रहे आंदोलन को इस सरकार ने अनदेखी करते हुए दबाने की कोशिश की है। जब 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्‍तर बंगाल समेत देश में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई तो जमीन खिसकती देख ममता ने चाय श्रमिकों को झांसा देने के लिए राज्य सरकार ने चाय सुंदरी योजना प्रारंभ किया है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि आज भी यह योजना सि‍र्फ कागजी है। उक्‍त बातें दार्जिलिंग के सांसद सह भाजपा के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता राजू बिष्‍ट ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कही।  

श्री बिष्‍ट ने कहा कि मुख्यमंत्री उत्तर बंगाल दौरे पर भाजपा के सांसदों पर आरोप लगाती है कि सांसदों ने चाय श्रमिकों के लिए कुछ नहीं किया। लेकिन हम बताना चाहते हैं कि भाजपा के उत्तर बंगाल सांसदों की ही देन है कि बंगाल और असम चाय बागान के लिए केंद्र सरकार ने केंद्रीय बजट में 1000 करोड़ रुपए का वेलफेयर फंड घोषित किया है। इसके दम पर ही यहां के चाय बागान श्रमिकों के दिन फिरने वाले हैं। इतना ही नहीं इन्‍हीं सांसदों की मांग पर केंद्र सरकार ने 1950 से चले आ रहे प्लांटेशन एक्ट को खत्म कर चार नया श्रमिक कानून बनाया है। जो कानून के रूप में आते हैं चाय श्रमिकों के न्यूनतम मजदूरी कम से कम 350 से अधिक मिलने लगेगी और उन्‍हे मिलने वाली स्वास्थ्य और आवास की सुविधा भी सरल होगी।

दार्जिलिंग के सांसद ने कहा कि सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उत्तर बंगाल के चाय श्रमिकों की समस्या से पूरी तरह अनभिज्ञ है, या तो वह जानकर भी अनजान बनी हुई है। श्री बिष्ट ने बताया कि उत्तर बंगाल में लॉकडाउन के दौरान चाय बागान में करीब 130 श्रमिक भूख और कुपोषण के शिकार होकर दम तोड़ चुके हैं। इस बात को ना ही मुख्यमंत्री और ना ही जिला प्रशासन मानने को तैयार है। वहीं सबसे अहम बात यह है कि उत्तर बंगाल को चाय बगान से सबसे ज्यादा टैक्स राज्य सरकार वसूल करती है, बावजूद इसके इन श्रमिकों की दशा और दिशा पर कभी ध्‍यान नहीं दिया गया।