ममता लुटा रही मां को चार वर्षीय बेटे के इलाज में मदद की दरकार
चार वर्षीय बेटा सोहन के ब्रेन में टूमर, पैसे के अभाव में नहीं हो पा रहा इजाल
पिता करता है गार्ड की नौकरी, बेटे के इलाज व घर चलाने में होती है परेशानी
पैसे के लिए दो शिफ्ट में करता है काम, 24 घंटे में चार घंटे घर रहता है पिता
पवन शुक्ल, सिलीगुड़ी
जीवन में ममता का मोल क्या होता है, एक मां ही जानती है ? अनजान खौफ से अनजान 4 वर्षीय सोहन पाल मां की गोद में हमेशा अठखोलियां करता रहता है। पर मां के दिल में जो दर्द का तूफान दिखाता है, उसकी झलक मां उमा पाल के आंखों और चेहरे पर साफ दिखार्इ देता है। आंखों में बेटे के बिछडने का डर हमेशा उसके चेहरे पर दिखाता है। गरीबी में बेबसी का आलम यह है कि बेटे के इलाज के लिए पिता राकेश पाल दो शिफ्ट दिन व रात में गार्ड की नौकरी कर रहा है। बावजूद इसके अपनी नन्हीं सी जान के ब्रेन टूयूमर इलाज नहीं करा पा रहा है। हलांकि सोहन की हालत अब धीरे-धीरे और खराब होताी जा रही है। जिसकी चर्चा करने पर उमा की आंखे भर आती है और इलाज उसका बंगलौर के नीमेंस में होना है। लेकिन उसके पास वहां रहने खाने के साथ दवा और टेस्ट लिए पैसे की दरकार है। हलांकि किसी तरह ये परिवार बंगलौर के नीमेंस हास्पीटल गया था। जिसे छह माह बाद आपरेशन के लिए बुलाया गया था, पर अफसोस की आज करीब डेढ़ साल हो गया पैसे के आभाव में वह बंगलौर नहीं जा पा रही है और अनजान खौफ से उमा पाल हर पल-पल किसी अनहोनी के खौफ से डर रही है।
सिलीगुड़ी के हैदरपाड़ा के विवादी सारणी में एक छोटे से किराए के मकान में रहने वाले राकेश पाल व पत्नी उमा पाल दे करीब पाँच वर्ष पहले अपने बड़े बेटे प्रियांसु पाल अब (16 वर्ष) के साथ खुशी-खुशी जीवन संसार चला रही थी। फिर घर में एक और किलकारी गुंजी परिवार में खुशी का माहौल हो गया, लेकिन कुदरत का करश्मिा देखीए। वर्तमान में चार वर्षीय सोहन की आंखे जन्म से 6 माह तक नहीं खुली। परिवार ने फिर डाक्टर से संपर्क किया डाक्टर ने बोला ठीक हो जाएगा। लेकिन मां का दर्द तो डाक्टर नहीं समझ पाया धीरे-धीर रोग बढ़ता गया। फिर राकेश ने परिवार के साथ राजधानी दिल्ली का रूख किया। जहां अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान( एम्स) दिखाया गया। जहां पर डाक्टरों ने आपरेशन के लिए डा. राम मनोहर लोहिया हास्पीटल रेफर किया गया। पर उमा की बदकिस्मती वहां भी साथ नहीं छोड़ी अधिक गर्मी होने के कारण डाक्टर ने आपरेशन करने से मना कर दिया क्योंकि उस समय सोहन की उम्र करीब दो वर्ष की थी।
उसके बाद परिवार सिलीगुड़ी आ गया और किसी तरह से इधर-उधर से पैसे इंतजाम कर वह सोहन को बंगलौर के निमेंस हास्पीटल लेकर गए। वहाँ इलाज तो ठीक रहा पर सोहन की कमजोरी के कारण वहां भी डाक्टरों नें दवा दिया और बोला की छह माह बाद लेकर आईए आपरेशन होगा। लेकिन पैसे के आभाव में उमा पाल आज करीब डेढ़ वर्ष के बाद भी इजाल के लिए बंगलौर नहीं जा सकी। हर समय अपने दिल के टुकड़े सोहन की देख रेख में लगी उमा बताती है कि दिन रात हमेशा एक अनजान से दर्द को लेकर जी रही हूं। उमा ने सभी सामाजिक संगठनों के साथ आम लोगों से अपील किया है मेरे कलेजे के टुकड़े के लिए अगर कोई मेरी मदद करेगा तो मेरी ममता की आस नहीं टूटेगी।
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उमा पाल दे हैदरपाड़ा-96418-98263