• पूर्वांचली विरासत पर गर्व करने वाले बर्ट ठाकुर की ऐतिहासिक जीत, भारतीय-अमेरिकी समुदाय में उत्साह की लहर
• BAANA द्वारा डलास में भव्य स्वागत समारोह, बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय ने दिखाई एकजुटता
एनई न्यूज भारत,डलास, टेक्सास/नई दिल्ली|12जून: भारतीय मूल के सिद्धार्थ (बर्ट) ठाकुर ने इतिहास रचते हुए अमेरिका में सिटी काउंसिल के लिए निर्वाचित होने वाले पहले पूर्वांचली-अमेरिकन बनने का गौरव प्राप्त किया है। डलास, टेक्सास जैसे प्रतिष्ठित शहर में यह उपलब्धि हासिल कर उन्होंने न केवल उत्तर भारत, बल्कि पूरे भारतीय-अमेरिकी समुदाय को गर्वित किया है।
उनकी इस ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में भोजपुरी और अवधी एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (BAANA) द्वारा डलास में एक भव्य सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में डलास फोर्ट वर्थ क्षेत्र की भारतीय समुदाय के लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम में सिद्धार्थ ठाकुर के प्रेरणादायक नेतृत्व, संघर्ष और पूर्वांचली जड़ों से जुड़े उनके गर्व को भावभीनी श्रद्धा के साथ सराहा गया।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे BAANA अध्यक्ष प्रवीण के. सिंह ने कहा, "यह जीत सिर्फ बर्ट ठाकुर की नहीं, बल्कि हर उस भारतीय की है जो अपने मूल से जुड़कर अमेरिका में सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहा है।" उपाध्यक्ष सौरव कुमार, महासचिव सत्य साह, कोषाध्यक्ष ब्रजेश कुँवर और हिमांशु सिंह ने भी मंच से बर्ट ठाकुर के योगदान और संघर्ष की सराहना की।
सिद्धार्थ ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा, "मैं अपनी जीत अपने पूर्वजों, अपने पूर्वांचली मूल और भारतीय संस्कृति को समर्पित करता हूं। डलास जैसे महान शहर की सेवा करना मेरे लिए गर्व और जिम्मेदारी का विषय है।"
इस विशेष मौके पर भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री राकेश श्रीवास्तव ने भी भारत से वर्चुअल जुड़ते हुए इस उपलब्धि पर प्रसन्नता जताई और इसे नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बताया।
बर्ट ठाकुर की जीत को अमेरिका में बसे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रवासी भारतीयों के लिए एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। यह साबित करता है कि भारतीय मूल के लोग न केवल विज्ञान, तकनीक और चिकित्सा में, बल्कि अब राजनीतिक नेतृत्व में भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
बर्ट ठाकुर की यह जीत केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि प्रवासी भारतीयों की सामूहिक उपलब्धि है। यह क्षण हर भारतीय के लिए गर्व का है, खासकर उन लोगों के लिए जो अपनी मिट्टी से दूर रहकर भी अपने मूल्यों, भाषा और संस्कृति से जुड़े रहे हैं।