डुआर्स से पीढ़ी पहले के आदिवासी हैं इस बात का प्रमाण: राजेश लकड़ा
एनई न्यूज भारत, कोलकाता
डुवार्स के आदिवासी नेता राजेश लकड़ा उर्फ टाइगर के साथ डुआर्स छठी अनुसूची मांग समिति के सदस्यों ने बुधवार को कोलकाता में बंगाल के राज्यपाल सीवी रमन बोस से मुलाकात की और छठी अनुसूची की मांग के लिए एक ज्ञापन सौंपा। इसके साथ ही चाय बागानों की जमीनों को उद्योगपतियों को चाय बागान की 30% भूमि आवंटित करने पश्चिम बंगाल सरकार के अध्यादेश को रद्द करने की मांग भी उठाई है। वहीं दूसरी ओर राज्यपॉ से इन क्षेत्रों को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने का आग्रह किया गया।
राज्यपॉल से मिलकर ज्ञापन सौंपने के बाद आदिवासी नेता राजेश लकड़ा उर्फ टाइगर ने बताया कि 6वीं अनुसूची मांग समिति ने अनुच्छेद 224 (2) एवं 275(1) (छठी अनुसूची), न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, संख्या 486-एलपी/3टी-14/15 (भाग-I) चाय पर्यटन के लिए भूमि "15%" के स्थान पर "30%" का आंकड़ा रद्द किया जाए। इसके साथ ही सौंपे ज्ञापन के माध्यम से हम आपको डुआर्स, तराई और पहाड़ियों की ऐतिहासिक और भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में भी बताया गया। राजेश लकड़ा ने बताया कि 1700 में इन क्षेत्रों के मूल निवासियों के समय में विभिन्न प्रकार की भाषाएँ, संस्कृतियाँ, ऐतिहासिक साक्ष्य और पर्यावरण थे। यह इस बात का प्रमाण है कि हम डुआर्स से पीढ़ी पहले के आदिवासी हैं। 1700-1947 में कामता साम्राज्य (कोच राजवाबंस) वह दोआर्स का शासक था। 18वीं शताब्दी के मध्य में कामता साम्राज्य के पतन के बाद भूटान ने डुवार्स क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था। मालूम हो कि छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में स्वायत्त आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशिष्ट है।