बंगाल में भाषाई भेदभाव के खिलाफ उठी आवाज

• डब्ल्यूबीसीएस 2025 परीक्षा से नेपाली, संथाली और हिंदी हटाए जाने पर विरोध

• डब्ल्यूबीसीएस परीक्षा से नेपाली, संथाली और हिंदी भाषा को हटाने पर छिड़ा विवाद

• भाषाई भेदभाव के खिलाफ छात्रों और संगठनों ने उठाई आवाज, मुख्यमंत्री से की हस्तक्षेप की मांग

एनई न्यूज भारत, सिलीगुड़ी|1 जून: पश्चिम बंगाल सिविल सर्विस (एग्जीक्यूटिव) परीक्षा 2025 की अधिसूचना संख्या 1060-PAR(WBCS)/1D-179/21, दिनांक 24.07.2024 के तहत घोषित नवीनतम परीक्षा योजना में नेपाली, संथाली और हिंदी भाषाओं को हटाए जाने को लेकर प्रदेशभर में आक्रोश फैल गया है। इस गंभीर मुद्दे को लेकर आज एक जनप्रतिनिधि ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के हिल्स स्टूडेंट यूनियन (HSA) और ऑल बंगाल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ABASA) ने यह मुद्दा उठाया है कि:

• मुख्य परीक्षा के वैकल्पिक विषयों की सूची (अनुभाग 7) से नेपाली भाषा को हटा दिया गया है।

• सामान्य पेपर A (अनुभाग 6) से संथाली और हिंदी भाषाओं को हटा दिया गया है।

इन निर्णयों से गोरखा और आदिवासी छात्रों को गहरा आघात पहुंचा है। ये भाषाएँ न केवल इन समुदायों की मातृभाषाएं हैं, बल्कि छात्र इन्हीं भाषाओं में अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। ऐसे में इन भाषाओं को परीक्षा से बाहर करना उनके लिए असमान प्रतिस्पर्धा की स्थिति उत्पन्न करता है।

पत्र में कहा गया है कि यह निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध) और अनुच्छेद 16 (समान अवसर का अधिकार) का सीधा उल्लंघन है। यह कदम न केवल भाषाई अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करता है, बल्कि उन्हें राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में समान अवसर से वंचित करता है।

मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में यह मांग की गई है कि:

• अधिसूचना को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाए।

• प्रभावित पक्षों से विस्तृत विचार-विमर्श कर आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।

यह मामला केवल परीक्षा योजना से संबंधित नहीं है, बल्कि शैक्षिक न्याय और भाषाई समानता के अधिकार से जुड़ा हुआ है। छात्रों की मातृभाषा में परीक्षा देने का अधिकार सुनिश्चित करना राज्य सरकार की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है।

अब यह देखना होगा कि क्या पश्चिम बंगाल सरकार समय रहते इस अन्यायपूर्ण निर्णय को वापस लेकर छात्रों को न्याय दिला पाती है।